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७० संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ
जैन धर्म की अधिकतर विद्या-देवियाँ चार हाथों वाली मानी गई हैं, लेकिन बौद्ध धर्म में सरस्वती को दो अथवा छः हाथों वाली बताया गया है। द्विहस्ता होने पर उनके चार रूप विभिन्न नामान्तरगत हैं। इसके अतिरिक्त सरस्वती देवी को आठ तथा दश भुजाओं वाली भी बताया गया है, परन्तु पुराणों में एतद्विषयक सिद्धान्तमात्र हैं, ऐसा कहना युक्त प्रतीत नहीं होता, क्योंकि वहाँ उसका प्रयोगात्मक स्वरूप भी उपलब्ध है । कहा जाता है कि राजा अम्बुवीचि ने सरस्वती की जिस प्रतिमा का निर्माण किया था, वह पौराणिक प्रतिमाविद्या-सिद्धान्त-सङ्गत थी, अर्थात् उसकी चार भुजाएँ थीं और उनमें क्रमशः कमल, अक्षमाला, कमण्डलु एवं पुस्तक सुशोभित थे।'
जिस प्रकार सरस्वती के चारो मुख चारो वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैसा ही भाव उनके चार हाथों से निकाला गया है, अर्थात् चारो हाथ चारो वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं । कमण्डलु शास्त्रों के सार को बोधित करता है। चूंकि वह स्वयं सम्पूर्ण ज्ञान की प्रतिरूप हैं, अत एव वह सारे शास्त्रों की प्रतिनिधि हैं-ऐसा भाव प्रकट होता है । सम्भवतः इसी कारण उनको 'श्रुतिलक्षणा" की उपाधि से विभूषित किया गया है । हस्तधारित पुस्तक भी इसी भाव को अभिव्यक्त करती है। पुराण में एक स्थल पर उनके हस्तधारित पुस्तक की व्याख्या इस प्रकार की गई है : 'पुस्तकं च तथा वामे सर्वविद्यासमुद्भवम्'। यह नितान्त सत्य है कि सरस्वती देवी का सम्बन्ध सर्वप्रथम जल से रहा है, क्योंकि आदि काल में वह जलमय (सरित्) थीं और उनके प्रति अन्य विचार-धाराएँ उसी से पुष्पित एवं पल्लवित हुई हैं । जब उन्हें तन्मात्राओं की उत्पत्ति-स्थल अर्थात् जननी माना जाता है, जिनमें (तन्मात्राओं) में जल स्वतः आ जाता है, तो इससे उनका जल-सम्बन्ध स्वतः स्पष्ट हो जाता है। इन
१. विनयतोश भट्टाचार्य, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० ३४६-५१ २. वैकृति रहस्य, १५ ३. एच० कृष्ण शास्त्री, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० १८७; शारदातन्त्र, ६.३७ ४. स्कन्दपुराण, ६.४६. १६-१६ ५. डॉ० प्रियबाला शाह, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० १८४ ६. वही, पृ० १८५ ७. स्कन्दपुराण, ३३.२२ ८. डॉ० प्रियबाला शाह, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० १८६ ६. स्कन्दपुराण, ६. ४६. १६ १०. तुलनीय जेम्स हेस्टिङ्गस, इंसाइक्लोपीडिया ऑफ रीलीजन एण्ड एथिक्स,
भाग ११ (न्यूयार्क, १९५४), पृ० १६६ एच० एच० विल्सन, विष्णपुराण, ए सिस्टम प्रॉफ हिन्दू माइथालोजी एण्ड
ट्रेडीशन (कलकत्ता, १९६१), भूमिका भाग १, पृ० १४-१५ ११. वासुदेव शरण अग्रवाल, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ५३