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सरस्वती का वाहन
वेदों में सरस्वती के दो रूप उपलब्ध होते हैं । वह भौतिक रूप से एक प्रख्यात नदी है और तत्पश्चात् वाक् तथा देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित है । देवी के रूप में उसे मूर्तिवत्ता नहीं मिली है, जैसा कि अन्य देवियों एवं देवों को पौराणिक काल में प्राप्त हुई है | पौराणिक काल की एक महान् देन यह है कि उस काल में प्राय: देवियों और देवों को उनकी मूर्तिवत्ता के साथ-साथ विशिष्ट वाहनों से संयुक्त कर दिया गया है । वेदों में सरस्वती को भौतिक रूप में अर्थात् एक पार्थिव नदी के रूप में प्रस्तुत कर उसे एक वाहन से संयुक्त समझा जा सकता है । यह सामान्यतः नदियों के साथ स्वीकृत है कि वे नदी भी हैं तथा उन उन नदियों की वे देवी स्वरूप भी हैं । सरस्वती के साथ यह बात विशेष रूप से कही जा सकती है । यास्क ने इस सम्बन्ध में लिखा है :
सरस्वती नदीवद् देवतावच्च निगमा भवन्ति ।'
ऋग्वेद में सरस्वती को एक नदी के रूप में स्वीकार कर उसे नदी की देवी भी माना गया है | देवी के रूप में वह अपने जल द्वारा वहन की जाती है । इस प्रकार जल उसका वाहन है । सरस्वती का अर्थ है कि जो सदा गतिमान् हो । सामान्यतः पौराणिक काल में वाहनों की कल्पना साकार होती है । यहाँ वाहन प्रतीक के रूप में हैं । भिन्न-भिन्न देवों के साथ उनको सम्बद्ध कर उन वाहनों के अनेक अर्थ निकाले गये हैं । प्रकृत सन्दर्भ में सरस्वती के वाहनों पर विचार किया जा रहा है ।
ब्राह्मणिक सरस्वती का वाहन हंस है। पुराणों में सरस्वती को इसी से संयुक्त किया गया है । पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इस देवी ने हंस - वाहन को अपने पिता ब्रह्मा से पैत्रिक सम्पदा के रूप में प्राप्त किया है । मत्स्यपुराण के अनेक अध्याय मूर्ति-विद्या की अनेक मान्यताओं का प्रतिपादन करते हैं । तदनुसार ब्रह्मा को कमलासनस्थ अथवा हंसाधिरूढ प्रस्तुत किया गया है । इसी पुराण में सरस्वती की मूर्ति को हंसाधिरूढ प्रदर्शित किया गया है ।
१. निरुक्त, २.२३
२. म० पु० २६०. ४०
३. वही, २६१. २४-२५