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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ
पुष्टि कतिपय प्रमाणों से की जा सकती है । मथुरा-मूर्तिकला में ब्रह्मा के साथ सरस्वती को जो स्थान मिला हुआ है, उसमें पौराणिक विधियों की आंशिक अनुकृति प्रकट होती है । आंशिक का तात्पर्य यह है कि विष्णुधर्मोत्तर में ब्रह्मा के साथ सावित्री चित्रित की गई है, जबकि मथुरा-मूर्तिकला में ब्रह्मा के साथ सरस्वती को संयुक्त होने का गौरव प्राप्त हुआ है, परन्तु सिद्धान्त एवं प्रयोग की यह भिन्नता सदैव जड़ पकड़ी रही हो, ऐसी बात नहीं । मूर्तिकला के कुछ अन्य ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं, जिनमें पौराणिक प्रयोग एवं सिद्धांत का संतुलन सहज है तथा जिनकी पुष्टि की जा सकती है । ब्रह्मा की मूर्ति के साथ सरस्वती एवं सावित्री की मूर्ति सिन्ध स्थित 'मीरपुर खास', प्रारम्भिक चोला, अन्तिम होयसाल में उपलब्ध है।
राजा अम्बुवीचि के विषय में प्रसिद्ध है कि वह भारती के महान भक्त थे । अपने स्नेहाधिक्य के प्रकटीकरणार्थ उन्होंने सरस्वती नदी की मृत्रिका से भारती की प्रतिमा निर्मित की। इसी प्रकार भगवान् शिव के विषय में वामनपुराण का कथन है कि उन्होंने स्थाणु-तीर्थ पर सरस्वती की लिङ्गानुकृति मूर्ति स्थापित की ।
२. मुखः मूर्ति-जगत् में किसी भी देवी एवं देव की प्रतिमा में उनकी मुखाकार-प्रकार की महती महत्ता है । कारण है कि उसके ही माप-तौल पर सम्पूर्ण प्रतिमा का अङ्कन होता है । यही कारण है कि प्रतिमा-जगत् में अनेक प्रकार के मापों या तालों का जन्म पाया जाता है । मानसार के अनुसार सरस्वती एवं सावित्री की प्रतिमा दशतालानुसार होनी चाहिए : 'सरस्वतीम् च सावित्रीम् च दशतालेन कारयेत्' । नवताल, अष्टताल, सप्तताल आदि तालों में दशताल को सर्वोत्तम माना गया है । इस ताल के अनुसार सम्पूर्ण प्रतिमा मुख (मुख की लम्बाई) की दशगुनी होनी चाहिए । पुनः दश
१. तुलनीय बी० सी० भट्टाचार्य, इंडियन इमेजेज, पार्ट फर्स्ट (ठेकर स्प्रिक एण्ड ___ को०, कलकत्ता तथा सिमला-), पृ० १३ २. डॉ. प्रियबाला शाह, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० १४० ३. तुलनीय जितेन्द्रनाथ बनर्जी, दि डेवलप्मेन्ट ऑफ हिन्दू आइकोनोग्रेफी __ (कलकत्ता यूनीवर्सिटी, १६५६), पृ० ५१८ ४. वही, पृ० ५१८ ५. स्कन्दपुराण, ६.६४.१६-१७ ६. वामनपुराण, ४०.४
“यत्रेष्ठ्वा भगवान् स्थाणुः पूजयित्वा सरस्वतीम् ।
स्थापयामास देवेशो लिङ्काकारां सरस्वतीम् ॥" ७. मानसार ऑन आर्किटेक्चर एन्ड स्कल्पचर, ५४.१६ (प्रसन्नकुमार आचार्य,
लन्दन, १९३३)