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सरस्वती का पौराणिक नदी -रूप
नदियाँ ही दिखाई पड़ती हैं, पर यह विश्वास कैसे हो कि 'सरस्वती' भी यहाँ आकर गङ्गा एवं यमुना से मिलती है । वाडिया जैसे संसार - प्रसिद्ध भूतत्व - वेत्ता का कहना है कि सरस्वती यमुना के पश्चिम में बहा करती थी, लेकिन जब पृथ्वी की उथल-पुथल हुई, उस समय सरस्वती अपना पुराना मार्ग छोड़ कर पूर्व दिशा की ओर बढ़ने लगी तथा एक समय ऐसा आया जब कि वह यमुना में पूर्णतया विलीन हो गई ।' यह मत सर्वथा निर्दोष नहीं माना जा सकता, क्योंकि हम आगे चलकर देखेंगे कि इस नदी का पूर्व की अपेक्षा पश्चिम दिशा की ओर जाना सिद्ध होता है ।"
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धार्मिक निष्ठा की दृष्ठि से यह कहा जाता है कि सरस्वती एक महती पवित्र नदी थी । वह कलियुग को देखकर अथवा निषादों के स्पर्श-भय से पृथ्वी में छुप गई तथा अन्त:सलिला होकर प्रयाग में गङ्गा एवं यमुना के सङ्गम पर प्रकट होती है । एक ओर इस विचारधारा के भी मानने वाले लोग हैं कि प्रयाग में गङ्गा-यमुना से मिलने वाली सरस्वती नामक एक छोटी सी नदी रही है । लोगों ने उसे ही भ्रमवश वैदिक सरस्वती समझा । काल-क्रम से इसके लुप्त हो जाने पर लोगों की पूर्वकथित विचार धारा बनी रही । तथ्य तो यह है कि सामान्य जन विश्वास में 'माडर्न' सरसूति को वैदिक सरस्वती की मान्यता मिल चुकी है । स्थानीय लोगों में इसके 'वैदिक सरस्वती' होने की पूरी आस्था है । आज कल इसे 'घघ्घर' कहते हैं, जिसका उद्गम स्थल शिवालिक की पहाड़ियाँ हैं । आगे चलकर हनुमानगढ़ के पास यह घघ्घर नहर (एक पुरानी नदी का पेट ) से मिलती है, जिसका उद्गम स्थल शिवालिक की पहाड़ियाँ ही हैं । इन दोनों का मिला-जुला स्रोत भी सामान्यतया 'घघ्घर' अथवा 'सरसूति - घघ्घर ' कहलाता है । केवल 'घघ्घर' कहे जाने पर भी सरसूति ( सरस्वती का बिगड़ा रूप ) नदी की अभिव्यक्ति होती रहती है । यह 'स्रोत' पटियाला, हिसार, बीकानेर, बहावलपुर आदि स्थानों से होता हुआ पाकिस्तानी राज्य में प्रविष्ट होता है, जहाँ 'हाकरा' नाम से अभिहित होता हैं।" यहाँ 'हाकरा' 'सुक्कर-बन्ध-योजना' के मार्ग से होता हुआ अन्त
१. डी. एन. वाडिया, पूर्वीद्धृत ग्रन्थ, पृ० ३६२
२. तु० प्रकृत लेख, पृ० ४६-५०
३. तु० एन. एन. गोडबोले, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० २० : "The so-called Sarasvati near Allahabad was perhpaps a small stream and the real Sarasvati is left behind near Hanumangarh."
४. सर ओरेल स्टाइन, ज्यागरफिकल जनरल, भाग ६६ (१९४२), पृ० १३७ आगे ५. रे चौधुरी एच. सी., 'द सरस्वती', साइन्स एण्ड कल्चर ८ ( १२ ), १९४२, पृ० ४६८, एन. एन. गोडबोले, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ पृ० १६, “ The Ghaggar is known as Hakra when it enters the Pakistan area."