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सरस्वती का पौराणिक नदी -रूप
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ऐसा शान्तिपूर्ण वातावरण प्रस्तुत किया था, जिससे वे आपसी वैमनस्य को भुलाकर मित्र-भाव से रहा करते थे। सामूहिक रूप से 'सारिद्वरा : " की उपाधि सरस्वती, देविका एवं सरजू को दी गई है । इसके अतिरिक्त सरस्वती को 'ब्रह्मनदी" कहा गया है । इसी 'ब्रह्मनदी' सरस्वती में परशुराम ने अपना 'अवभृत स्नान" किया था । 'ब्रह्मनदी' विशेषण द्वारा ज्ञात होता है कि सरस्वती का ब्रह्मा के साथ घनिष्ट सम्बन्ध था तथा इस सम्बन्ध के आधार पर ब्रह्मा के सरस्वती के प्रति स्नेहाधिक्य की कल्पना की जा सकती है ।
संक्षेप में यहाँ सरस्वती के कतिपय पौराणिक उपाधियों का विवेचन किया गया है । वाणी, वाग्देवी, देवी, विद्या देवी, ज्ञानाधिष्ठात्री, वस्तुत्वदेवी इत्यादि के रूप में भी उसे अनेक उपाधियाँ मिली हैं । *
१. वही, १३३।२४
२. भागवतपुराण, ६ । १६ । २३
"
३. मोनियर विलियम्स ने 'अवभूत' का अर्थ इस प्रकार किया है : "Carrying off, removing; purification by bathing of the sacrificer and the sacrificial vessels after a sacrifice... इस प्रकार 'अवभृत स्नान' का अर्थ हुआ “ bathing or ablution after a sacrificial ceremoney.”—ए संस्कृत - इङ्गलिश डिक्शनरी ( द क्लैरेण्डन प्रेस, आक्सफोर्ड, १८७२), पृ० ६२
४. ब्रह्मयोनि (मार्कण्डेय पुराण, २३।३०), जगद्धात्री ( वही ), ब्रह्मवासिनी (मत्स्यपुराण, ६६ । ११ ), शब्दवासिनी (पद्मपुराण, ५।२२।१८६), श्रुतिलक्षणा (स्कन्दपुराण, ७।३३।२२), ब्रह्माणी, ब्रह्मसदृशी ( मत्स्यपुराण, २६१/२४), सर्वजिह्वा (मार्कण्डेय पुराण), २३।५७, विष्णोजिह्वा (वही, २३०४८), रसना (स्कन्दपुराण, ६ | ४६ / २९ ), परमेश्वरी ( वही, ६ । ४६ । ३६ ), ब्रह्मवादिनी ( मत्स्यपुराण, ४/२४), वागीश्वरी ( ब्रह्माण्डपुराण, ४/३६/७४), भाषाअक्षरा, स्वरा, गिरा, भारती (स्कन्दपुराण ४ । ४६ । २६६), वाग्देवता ( ब्रह्मवैवर्तपुराण, २/४/७३), वाग्वादिनी (वही, २०४/७५), विद्याधिष्ठात्री (वही, २।४।७५), विद्यास्वरूपा (वही, २२४७८), सर्ववणात्मिका (वही, २/४/७६), सर्वकण्ठवासिनी (वही, २/४/८०), जिह्वाग्रवासिनी ( वही ), बुधजननी ( वही, २०४८१), कविजिह्वाग्रवासिनी (वही, २/४/८३), सदम्बिका (वही, २२४२८३), गद्यपद्यवासिनी ( वही ), सर्वशास्त्रवासिनी (वही, २/४/८४ ), पुस्तकवासिनी (वही, २४/८५), ग्रन्थबीजरूपा ( वही), ब्रह्मस्वरूपा (वही, २/५/१०), ज्ञानाधिदेवी (वही, २।५।११) इत्यादि ।