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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ ..
पर भी वे स्वतंत्र हैं तथा उनका कार्य भी स्वतंत्र है, परन्तु उनका उद्गम एक है । अन्ततोगत्वा वे एक भी हैं।
२. सरस्वती, इडा तथा भारती वाणी के त्रिविध रूप :
ऋग्वेद में स्पष्टतः सररवती इडा तथा भारती को देवियों के रूप में स्वीकार किया गया है। भाष्यकारों ने अपने-अपने ढङ से इनका अर्थ अलग-अलग किया है अर्थ जो अनर्थ न हो, सदा श्लाघ्य होता है। फलतः व्युत्पन्न भाष्यकार ऊहा से सदैव दूर रहते हैं तथा वे जिन अर्थ की स्थापत्ति करते हैं, संसार उनका आदर करता है। ऋग्वेद के भाप्यकारों में स्कन्द स्वामी, माघवाचार्य, सायण, यास्क आदि प्रसिद्ध हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से संसार को लाभान्वित किया है । प्रकृत विषय के प्रसङ्ग में वाक्यपदीय का एक श्लोक उद्धृत है :
वैखर्या मध्यमायाश्च पश्यन्त्याश्चैतदद्भुतम् ।
अनेकतीर्थभेदायास्मध्या वाचः परं पदम् । ब्र० का० १४३ ।। इस श्लोक में वाणी के तीन रूप बताये गये हैं, जिनके नाम वैखरी, मध्यमा तथा पश्यन्ती हैं। इनके भी विभिन्न भेद हैं । इनके स्थान भी भिन्न-भिन्न हैं। पुनः पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी के स्थूला, सूक्ष्मा तथा परा रूप से तीन-तीन भेद और हैं। इस प्रकार कुल नौ भेद हुए । इन नौ भेदों में पूर्व तीन वाणियों का सम्मिश्रण करने पर वाणी के बारह प्रकार होते हैं । यह विभाजन आचार्य भर्तृहरि के सिद्धान्त पर आधारित है, जिसका विवेचन उन्होंने वाक्यपदीय में सविस्तार किया है । वाणी के इस विभाजन-प्रकार के विषय में विद्वानों में बड़ा मत-भेद है । वैयाकरणाचार्य वाणी के तीन भेद स्वीकार करते हैं, परन्तु शैव सिद्धान्तों के मत से केवल परा, पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी चार वाणियाँ हैं, अत एव इस विचार-वैभिन्य का समाधान आवश्यक है।
__ ऋग्वेद में भारती, सरस्वती तथा इडा से तीन देवियों का त्रिक् बनता है । ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया है कि कौन देवी किस वाणी का प्रतिनिधित्व करती है । यहाँ सूक्ष्म सङ्कतमात्र है। सायणाचार्य ने इन्हें वाक्, वाग्देवी तथा त्रिस्थाना माना है । इनका कथन है कि भारती, सरस्वती तथा इडा वाक्, (वाणी) की अधिष्ठात्री देवियाँ हैं और वे अपने भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व से धुलोक, अन्तरिक्ष-लोक तथा पृथिवी-लोक को सुशोभित करती हैं। इन्होंने प्रकृतिपरक व्याख्या के आधार पर भारती को 'द्युस्थाना वाक् २६ स्वीकार कर इसे 'रश्मिरूपा'२७ कहा है । सरस्वती को इन्होंने "माध्यमिका वाक्'२८ कहा है, क्योंकि यह स्तनितादिरूपा है । यह नितान्त सत्य भी है कि 'स्तनित' शब्द आकाश-व्यापी है । वायु ध्वनि का वाहक है । सरस्वती को वायुरूपा मानकर इसे वायु की संचालिका कहा गया है । इडा पृथिवी-लोक की वाणी है । .
वाणी अपने मूलरूप में एक है । यह एक चेतना का प्रतीक है, जिसकी कई अवस्थाएँ होती हैं। इन्हीं अवस्थाओं के कारण यह भिन्न-भिन्न रूपों को धारण करती है,