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ऋग्वैदिक सरस्वती नदी
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अरब की खाड़ी में गिरती थी। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में छोटा नागपुर का प्लेटू था । इस प्लेटू के दक्षिण में मेघना, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी आदि नदियाँ थीं, परिस्थितिवश जब इन नदियों में 'रीवर कैप्चर' होना प्रारम्भ हुआ, तब मेघना, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी आदि नदियों ने पीछे को हटकर सरस्वती को पकड़ लिया। ऐसी परिस्थिति
वैदिक सरस्वती का जल आधुनिक ब्रह्मपुत्र के मार्ग से बहने लगा । भागीरथी में भी 'रीवर कॅप्चर' हुआ । फलस्वरूप इसने गङ्गा को पकड़ लिया तथा गङ्गा ने यमुना, ause आदि नदियों को पकड़कर उनका जल अपने में मिला लिया । १२ 'इण्डो ब्रह्म रीवर' का निचला भाग शतद्रु, यमुना तथा घघ्घर के साथ प्रवाहित होता रहा । अन्त यमुना 'ने भी 'रोवर कॅप्चर' से वैदिक सरस्वती के निचले भाग को अपने में समाश्रित कर लिया ।" श्री गुप्ता इस प्रकार से गङ्गा, यमुना एवं सरस्वती का प्रयाग में सम्मिलन प्रदर्शित किया है ।
इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी कठिनाई वैदिक सरस्वती को आसाम की पहाड़ियों से जोड़ना हैं । आज सभी विद्वान् इस बात पर सहमत हैं कि वैदिक सरस्वती का उद्गमस्थल शिवालिक की पहाड़ियाँ हैं ४, अत एव उसका मार्ग आसाम की पहाड़ियों से दिखाना युक्तियुक्त नहीं है । फलस्वरूप श्री गुप्ता का मत सर्वथा निर्दोष नहीं कहा
जा सकता ।
डॉ० एन० एन० गोडबोले का मत है कि प्रयाग में गङ्गा एवं यमुना से मिलने वाली संभवतः कोई छोटी सी सरस्वती नामक नदी रही है । इसकी दिशा दक्षिण से सङ्गम की ओर थी । संभव है कि लोगों ने भ्रमवश इसे ही वैदिक सरस्वती मान लिया हो । १५
महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य 'रघुवंश' में प्रयाग पर गङ्गा तथा यमुना की छाया प्रदर्शित की है ।" उनकी एक अन्य कृति मेघदूत में वैदिक सरस्वती की एक निश्चित एवं स्पष्ट झलक पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर दिखाई देती है । कालिदास का यज्ञ मेघ से संदेश भेजते समय कहता है कि हे मेघ ! जब तुम मेरा संदेश लेकर मेरी प्रियतमा के पास कनखल होते हुए अलकापुरी जाओगे, तो रास्ते में तुम्हें सरस्वती नदी मिलेगी । उसका जल पान करने से तुम केवल वर्णमात्र से काले, पर भीतर से नितांत शुद्ध हो जाओगे । ७
१२. वही, पृ० ५३६
१३. वही, पृ० ५३७
१४. तु० डी० एन० वाडिया, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० १० एन० एन० गोडबोले,
ऋग्वैदिक सरस्वती ( राजस्थान, १९६३), पृ० १७
१५. एन० एन० गोडबोले, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० २०
१६. रघुवंश, १३.४४-४८
१७. मेघदूत, १.५२-५४