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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ
का विभिन्न नामकरण शतरूपा, सावित्री, गायत्री, सरस्वती तथा ब्रह्माणी के रूप
में हुआ ।
एक दूसरे विवरण के अनुसार, ब्रह्मा ने अपने अर्ध शरीर से रूप में एक सुन्दर स्त्री की उत्पत्ति की । वह स्वयं इनके समान ही सृष्टि में निपुण थी । मत्स्यपुराण का एक अन्य विवरण भी अनुसार ब्रह्मा ने सरस्वती की उत्पत्ति लक्ष्मी, मरुत्वती, साध्या तथा की । पद्मपुराण में भी इसी प्रकार का वर्णन मिलता है ।"
अपनी पत्नी के
सम्पूर्ण संसार की
मिलता है । उसके विश्वेशा के साथ
३. वायुपुराणः
I
इस पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने सर्वप्रथम अपने मानस पुत्रों की रचना की । वे अपने पिता ब्रह्मा के सदृश थे । वे सब ज्ञानवान् तथा संसार के प्रलोभनों से तटस्थ थे ( आगतज्ञाना वीतरागा विमत्सराः), अत एव सांसारिक प्रपञ्चों से उन्हें लिप्सा नहीं रही । ब्रह्मा को अपनी इस प्रकार की सृष्टि से लाभ नहीं हुआ और वह चिन्ताग्रस्त हो विचारमग्न रहने लगे । चिन्ताग्रस्तावस्था में सम्भवतः अपनी कार्यसिद्धि की निराशा से उन्हें क्रोध उत्पन्न हुआ । फलतः उनके क्रोध से सूर्य के सम तेज धारण किये हुए एक पुरुष की उत्पत्ति हुई । इस पुरुष का रूप बड़ा ही भयंकर एवं तेजस्वी था । इसका आधा शरीर पुरुष - रूप तथा आधा स्त्री रूप था । ब्रह्मा ने इसे अपने पुरुष तथा स्त्री रूप में विभक्त करने का आदेश दिया तथा उस पुरुष ने ब्रह्मा की आज्ञा का तत्क्षण पालन किया । ब्रह्मा ने पुन: पुरुष को अपने पुरुष-रूप में विलग करने का निर्देश दिया, अत एव उसने पुरुष - रूप को ग्यारह रुद्रों में बाँट
अपने
१. उपरिवत्, ३.३०-३२
२. उपरिवत् १७१.२१-२२
३. 'मरुत्वती' शब्द को पुराणों ने वैदिक साहित्य से उधार लिया है । यह शब्द ऋग्वेद में कई स्थानों पर मिलता है । वहाँ सरस्वती का सम्बन्ध मरुतों से दिखाया गया है और उसे मरुत्सखा ( ७.९६.२), मरुत्वती (२.३०.८) तथा मरुत्सु भारती (१.१४२.६ ) कहा गया है इन सन्दर्भों से सरस्वती मरुतों की सखा-स्वरूप मानी जा सकती है अथवा इनसे सरस्वती का मरुतों से प्रगाढ सम्बन्ध प्रकट होता है । यहाँ मरुत्वती सरस्वती की उपाधि अथवा विशेषण है, परन्तु पुराणों में मरुत्वती तथा सरस्वती ब्रह्मा की दो भिन्न सन्तति हैं ।
४. मत्स्यपु० १७१.३२-३६
५. पद्मपु० ५.३७.७६-८०