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सरस्वती की पौराणिक उत्पत्ति
दिया।' पुरुष-रूप की अपेक्षा पुरुष का स्त्री रूप अत्यन्त ही विलक्षण था । उसका दक्षिण भाग श्वेत तथा वाम भाग कृष्ण वर्ण था । ब्रह्मा ने पूर्ववत् पुरुष के स्त्री-रूप को आदेश दिया कि वह अपने कृष्ण तथा श्वेत भागों को अलग-अलग कर दे। अन्ततोगत्वा ऐसा ही हुआ । यही श्वेत भाग स्वाहा, स्वधा, महाविद्या, मेधा, लक्ष्मी, सरस्वती तथा गौरी के रूप में प्रख्यात हुआ। इस प्रकार सरस्वती गौरी (श्वेत वर्णा देवी) का प्रतिनिधित्व करती है, जो पुरुष के स्त्री-रूप अंश का श्वेत भाग है ।
वायुपुराण के एक अन्य स्थल पर कहा गया है कि ब्रह्मा ने सरस्वती की उत्पत्ति विश्वरूपा में की। इस सम्बन्ध में उसका कथन है कि ब्रह्मा की कोई सन्तान नहीं थी। एतदर्थ उन्होंने ध्यान धारण किया, जिससे सरस्वती घोर शब्द करती हुई विश्वरूपा के रूप में उत्पन्न हुई। यह उनकी मानस सृष्टि तथा प्रकृति-रूप थी।
४. ब्रह्माण्डपुराणः इस पुराण में सर्वप्रथम पुरुष तथा स्त्री के रूप में एक दम्पती-प्रसव का वर्णन मिलता है। इसका उत्पत्ति-स्थल महालक्ष्मी है। प्रकृत-संदर्भ में यहाँ वर्णन मिलता है कि महालक्ष्मी ने सर्वप्रथम तीन अण्डों को उत्पन्न किया। एक अण्डे से ब्रह्मा की श्री के साथ, दूसरे से सरस्वती की शिव के साथ तथा तीसरे से विष्णु की अम्बिका के साथ उत्पत्ति हुई।
ये तीनों अण्डे प्राथमिक रूप से हिरण्यगर्भ प्रजापति की अवस्था को द्योतित करते हैं । तात्पर्य यह है कि सृष्टि के पूर्व कुछ नहीं था। सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति हुई । यह सभी प्राणियों का स्वामी है । स्वर्ग एवं पृथ्वी का अवलम्बन है ।
१. डॉ० आचार्य बलदेव उपाध्याय, पुराण-विमर्श (वाराणसी, १९६५), पृ०
२८३-२८४, "इनसे पूर्व सनन्दन, सनातन आदि चारो कुमारों की सृष्टि ब्रह्मा ने सृष्टि की वृद्धि के लिए की थी; सन्तान तथा संसार के प्रति उनके औदासीन्य तथा निरपेक्ष-भाव को देखकर पितामह के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। उसी समय क्रोधदीप्त तथा भृकुटि-कुटिल ललाट से प्रचण्ड सूर्य के समान प्रकाशमान रुद्र का अविर्भाव हुआ। रुद्र के शरीर का वैशिष्ट्य यह था कि उनका आधा शरीर नर के आकार में था और आधा शरीर नारी के आकार में था । ब्रह्माजी के आदेश से रुद्र ने अपने शरीर का द्विधा विभाजन कियास्त्री रूप में और पुरुष रूप में । पुरुष भाग को ग्यारह भागों में पुनर्विभक्त किया तथा स्त्री-भाग को सौम्य-क्रूर, शान्त-अशान्त, श्याम-गौर आदि अनेक
रूपों में विभक्त किया । रुद्र द्वारा आविर्भावित यह सृष्टि रौद्री सृष्टि के . नाम से पुराणों में अभिहित की गई है।" २. वायुपु० ६.७१-८७ ३. उपरिवत्, २३.३७-३८