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सरस्वती का पौराणिक नदी- रूप
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स्वती ) ! तुमने गङ्गा तथा निरपराध लक्ष्मी के साथ कलह खड़ा किया है, अत एव इसका परिणाम भोगो' । तुम पृथ्वी लोक चली जाओ । तुम्हारे समान गङ्गा भी शिवनिवास को चली जायेगी । पद्मा (लक्ष्मी) इस कलह में तटस्थ रही है, अत एव वह ही एकमात्र निरपराध होने के कारण मेरे साथ यहाँ स्वर्ग में रहेगी" । तत्पश्चात् सरस्वती पृथ्वी तल पर आ गयी । पृथ्वी तल पर होने के कारण वह भारती कहलायी; ब्रह्मा की प्रिया होने के कारण ब्राह्मी; वाणी की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण वाणी; सतप्रवहमान स्रोत की भाँति ( स्रोतस्येव) सम्पूर्ण संसार को परिव्याप्त कर वर्तमान होने तथा हरि के सरोवर से सम्बद्ध होने के कारण 'सरस्वती' कहलाई ।
हम वैदिकेतर साहित्य में यह देखते हैं कि गङ्गा को सर्वाधिक महत्ता दी गई है । उसे शिव-सिर पर निवास करने वाली कहा गया है । आकाश-सरित् ( आकाश. गङ्गा) मानकर इसकी अनन्य दिव्यता स्वीकार की गई है । गङ्गा का अस्तित्व पृथ्वी पर अब भी है, अत एव पौराणिक इस कथन को, कि वह पहले स्वर्ग में थी, तत्पश्चात् शिव के सिरस्थान को प्राप्त करती हुई पृथ्वी पर आई, अत एव दिव्य है - पर्याप्त सहारा एवं लोकप्रियता मिली है, परन्तु ऋग्वैदिक काल में सरस्वती की मर्यादा गङ्गा की अपेक्षा कई गुनी बढ़ी चढ़ी थी। अपने विस्तार, गहनता, सतत्प्रवाह आदि गुणों कारण वह ‘लोह-दुर्ग' कहलाती थी, परन्तु जब यह नदी विनष्ट हो गयी, तो स्पष्ट है कि इसकी लोकप्रियता को पर्याप्त आघात पहुँचा। पौराणिक विश्वास के अनुसार गङ्गा दिव्य है तथा उसका उद्गम वही है, जो सरस्वती का है । उससे सिद्ध है कि सरस्वती भी दिव्य हुई ।
(२) स्कन्दपुराण में कुछ इसी प्रकार की कथा आती है । इसके अनुसार भी सरस्वती पहले एक देवी थी। पृथ्वी तल पर फैला हुआ समुद्र वडवाग्नि- आलुप्त था । इस वडवाग्नि को पाताल लोक में करने तथा इसके कुप्रभाव से देवों को बचाने के निमित्त, भगवान् विष्णु ने स्वयं सरस्वती से प्रार्थना की, कि वह पृथ्वी पर पधारे ।
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९. वही, २।६।४१-५३
२. वही, ।२।७।१-३
"पुण्यक्षेत्र ह्याजगाम भारते सा भारती । गङ्गाशापेन कलया स्वयं तस्थौ हरेः पदम् ॥१॥ भारती भारतं गत्वा ब्राह्मी च ब्रह्मणः प्रिया । वागधिष्ठात्री सा तेन वाणी च कीर्तिता ॥२॥ सर्वविश्वं परिव्याप्य स्रोतस्येव हि दृश्यते । हरिः सरःसु तस्येयं तेन नाम्ना सरस्वती ॥३॥ "
३. तु० मुहम्मद इसराइल खाँ, 'सरस्वती के
कतिपय ऋग्वैदिक विशेषणों की विवेचना' नागरी प्रचारिणी पत्रिका श्रद्धाञ्जलि श्रङ्क (वाराणसी, सं. २०२४), पृ० ४७०-४७१