________________
२८
संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ...समुद्र हिलोरें लेता था । सरस्वती इसी समुद्र में गिरा करती थी। इस प्रकार उत्तरी भारत में दो समुद्र पूर्व एवं पश्चिम में अवस्थित थे तथा दक्षिण दिशा से परस्पर जुड़े थे। इनके पारस्परिक संयोजन से उत्तरी भारत दक्षिण से पूर्णरूप से विभक्त था।
लोगों की अतीत काल से यह धारणा बनी हुई है कि गङ्गा, यमुना तथा सरस्वती-ये तीनों नदियाँ प्रयाग में सङ्गम पर मिलती हैं । प्रत्यक्षरूप से यहाँ गङ्गा एवं यमुना दो ही नदियाँ दिखाई देती हैं, अत एव स्वाभाविक रूप से केवल उन्ही दोनों का वहाँ सङ्गम मानना चाहिए। इस समस्या का समाधान एक जटिल प्रश्न है। कुछ शास्त्रों के अनुसार यह भी बताया जाता है कि एक समय सरस्वती प्रत्यक्ष रूप से गङ्गा तथा यमुना से प्रयाग में मिलती थी, परन्तु कलियुग को देखकर अथवा निषादों के स्पर्श-भय से लुप्त हो गई। अब यह केवल अंतः सलिला है तथा पृथिबी के भीतर ही भीतर बहती हुई प्रयाग में गङ्गा एवं यमुना के सङ्गम पर मिलती है, परन्तु भूगर्भशास्त्र तथा अन्य भूगोल शास्त्र विषयक खोजों के आधार पर यह धारणा मिथ्या एवं हास्यास्पद मानी जाती है।
कुछ आधुनिक विद्वान् प्रयाग में इन तीनों नदियों का सङ्गम एक विचित्र प्रणाली से सिद्ध करते हैं । प्रसिद्ध भूतत्त्ववेत्ता डॉ० डी० एन० वाडिया का कथन है कि प्राचीन काल में सरस्वती गङ्गा के पश्चिम में बहा करती थी । काल-क्रम से जब पृथिवी की उथल-पुथल प्रारम्भ हुई, तब सरस्वती की दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होने लगी तथा अंततोगत्वा वह प्रयाग में गङ्गा से जा मिली । तब उसका नाम 'यमुना' पड़ गया। इस मत के आधार पर भी समस्या का समाधान नहीं दीखता। वाडिया साहब ने घूम-घाम कर प्रयाग में दो ही नदियों का सङ्गम दिखाया है । इतना ही नहीं, उन्होंने असली यमुना पर सरस्वती की अक्षिप्ति दिखाई है तथा समस्या को और भी उलझा दिया है।
श्री दिवप्रसाद दास गुप्ता का मत भी विचारणीय है । इन्होंने पाश्चात्य विद्वान पास्कोई द्वारा प्रतिपादित इण्डो-ब्रह्म रीवर सिद्धान्त के आधार पर वैदिक सरस्वती नदी का एक विस्तृत मार्ग निर्धारित करने की चेष्टा की है । आप का कथन है कि सरस्वती प्राचीन काल में आसाम की पहाड़ियों से निकल कर पंजाब के पश्चिम में स्थित
८. ए. सी. दास, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ७ ६, तु० ऋ० १०.१३६.५; मत्स्यपुराण, १२१.६५ १०. डी० एन० वाडिया, जिआलोजी ऑफ इण्डिया (न्यूयार्क, १९६६),
पृ० ३६२ ११. दिवप्रसाद दास गुप्ता, 'आइडेण्टिफिकेशन ऑफ एंशिएण्ट सरस्वती रीवर',
प्रोसीडिंग्स एण्ड ट्रांजैक्शंस ऑफ आल इण्डिया ओरिएण्टल कांफ्रेंस, १८वाँ सेशन (अन्नामलाई नगर, १९८५), पृ० ५३५