________________
ऋग्वैदिक सरस्वती-नदी
३१
२५
ब्राह्मण में एक स्थान पर प्लक्षप्रास्रवण तथा विनशन का वर्णन मिलता है । इन दोनों स्थानों के बीच की दूरी ४४ 'आश्वीन' बताई गई है । २४ एक 'प्राश्वीन' एक अश्वारोही की एक दिन की यात्रा है । आश्वीन की दूरी सर्वसम्मति से एक सी नहीं । कोई इसे ४ योजन, कोई ५, कोई ६, ८, ९, १२ योजन का मानते हैं ।" प्लक्षप्रास्रवण हिमालयस्थ वह स्थान है, जहाँ से सरस्वती उद्भूत होती है । ऐसी विकट परिस्थिति में प्लक्ष - प्रास्रवण से 'विनशन' तक की एक निश्चित दूरी निर्धारित करना कठिन ही नहीं, असंभव कार्य है ।
२६
वस्तुतः आज 'आधुनिक सरसूति' ( मार्डन सरसूति) को वैदिक सरस्वती होने की पूरी-पूरी मान्यता मिल चुकी है । अनेक भारतीय विद्वानों की भाँति पाश्चात्य विद्वान् सर ओरेल स्टाइन ने अपने निजी पर्यवेक्षण के आधार पर इसी 'सरसूति' को ऋग्वैदिक सरस्वती सिद्ध करने का श्लाघनीय प्रयत्न किया है ।" यह थानेसर के पश्चिम १४ मील की दूरी पर स्थित आधुनिक पेहुआ अथवा पृथूदक के निकट बहती है ।" यह शिवालिक की पहाड़ियों से निकल कर आदि बद्री से होती हुई जब हनुमानगढ़ के पास आती है' तब घघ्घर से मिल जाती है । यह घघ्घर भी उसी शिवालिक की पहाड़ियों से निकलने वाली एक नदी का अवशेष है । दोनों का मिला-जुला स्रोत सरसूति- घघ्घर अथवा केवल घघ्घर कहलाता है । केवल घघ्घर कहे जाने पर भी 'सरसूति' की अभिव्यक्ति स्वयमेव होती रहती हैं । पटियाला, हिसार, बीकानेर, बहावल - पुर से होती हुई जब यह पाकिस्तानी राज्य में प्रविष्ट होती है, तब 'हाकरा' नाम से अभिहित होती है । यह हाकरा सरस्वती ( सरसूति) का पुच्छ है । यह वर्ष में नवम्बर से जून तक प्रायः सूखी रहती है । इसे वास्तव में 'पूर्वी नारा' (इस्टर्न नारा) कहा जाता
२४. ताड्यब्राह्मण, २५.१०.१६
२५. तु० अथर्ववेद, ६. १३१.३; महाभाष्य, ५. ३. ५५; अर्थशास्त्र, २.३० २६. मैक्डानेल एण्ड कीथ, वैदिक इण्डेक्स ऑफ नेम्स एण्ड सब्जेक्ट्स, भाग-२
(दिल्ली, १९५८), पृ० ५५; डॉ० ए० बी० एल० अवस्थी, स्टडीज इन स्कंदपुराण, भाग १ ( लखनऊ, १९६६), पृ० १५३; स्कंदपुराण, ७. ३३.४०-४१
२७. सर ओरेल स्टाइन, जिनागरफिकल जनरल, भाग-६६ (जनवरी-जून, १९४२), पृ० १३७ तथा आगे
२८. एलेक्जेण्डर कनिङ्घम, द एंशिएण्ट जिलोगरफी ऑफ इण्डिया (वाराणसी, १९६३), पृ० २८३
'द ओल्ड टाउन ऑफ पेहोआ इज़ सिचुएटेड् ऑन द साउथ बैक ऑफ सरसूती, १४ माइल्स टु द वेस्ट ऑफ थानेसर ।'