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-४ऋग्वैदिक सरस्वती-नदी
आज गङ्गा हमारे देश की एक महती पवित्र नदी मानी जाती है । पुराणों में इसका यशोगान मुक्त कण्ठ से किया गया है । यह नदी किसी समय भगीरथ के प्रयत्नों द्वारा स्वर्ग से भूतल पर लाई गई थी, अत एव स्वर्गीया होने के कारण जन-मानस में इसे बड़ी श्रद्धा मिली है । लोग इसे गङ्गा माँ कह कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तथा इसका जल-पान कर अपने को कृत्य-कृत्य मानते हैं, परन्तु एक समय ऐसा भी था, जबकि गङ्गा को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिली थी। उस काल का नाम 'वैदिक युग' था। उस युग की सब से बढ़ी-चढ़ी नदी सरस्वती थी। एतत्सम्बन्धी प्रमाण वैदिक मंत्रों में भरे पड़े हैं ।' ऋग्वेद के 'नदी-स्तुति' विषयक मंत्रों में जहाँ गङ्गा का वर्णन दो या तीन बार हुआ है, वहाँ सरस्वती की स्तुति अनेकशः हुई है । इसके लिए संपूर्ण दो सूक्त आते हैं। इसके अतिरिक्त छिट-पुट अनेक मंत्रों में इसका यशोगान किया गया है। ऋग्वैदिक एक मंत्र के अनुसार सरस्वती माताओं, नदियों एवं देवियों में सर्वश्रेष्ठ है :
अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति' यह नदी पर्वतों से निकल कर समुद्र पर्यन्त जाती थी। विशालकाय, तीव्र, गतिशील एवं अगाध होने के कारण जनमानस में अनायास भय उत्पन्न करती थी। वैदिक काल में गङ्गा एवं यमुना छोटी-छोटी नदियाँ थीं । वे अपने लघु पथ को पार कर एक छोटे से सागर में गिरा करती थीं, जिसका नाम गङ्गटिक समुद्र था। यह समुद्र आज के गङ्गा-यमुना के मैदानों में अवस्थित था । आज की भाँति गङ्गा तथा यमुना का मार्ग हिमालय से लेकर बङ्गाल की खाड़ी तक नहीं था। सरस्वती भी हिमालय से निकलती थी। हम आज जहाँ राजपूताना देखते हैं, वैदिक काल में वहाँ एक अथाह
१. ऋग्वेद, १.३.१२; २.४१.१६; ३.२३.४-५; ४२.१२; ४३.११; ६.५२.६;
७.३६.६; ६.६; ८.२१. १७-१८; ५४.४; १०.१७.७; ६४. ६; ७५.५
इत्यादि । २. वही, ७.६५.१-६,६६.१-६ ३. वही, २.४१.१६ ४. वही, ७.६५.२ ५. वही, ६.६२.१४ ६. ए. सी. दास, ऋग्वैदिक इण्डिया (कलकत्ता, १९१७), पृ० ८ ७. यशपाल टण्डन, ए कांकारडेंस ऑफ पुराण काष्टेण्ट्स (होशिआरपुर, - १९५२), पृ० ५२