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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ .
दोहन किया। इसका तात्पर्य यही समझ में आता है कि राजा नहुष सरस्वती के बहुत बड़े भक्त रहे हों और उनकी भक्ति से प्रसन्न हो, उसने (सरस्वती) राजा को ऐसा आशीर्वाद दिया हो, जिससे उसकी गो-सम्पत्ति दिन-दूनी रात चौगुनी होने लगी हो । अंततोगत्वा वह इतनी बढ़ गई हो, जो सहस्र संवत्सर यावत् समाप्त न होने वाली हो गई हो । राजा बलि के विषय में उनके गो-सम्बन्धी कार्य अधिक ख्यात हैं । उनका यह आख्यान पौराणिक आधारशिला पर टिका हुआ है, पर जहाँ एक ओर राजा बलि गो-सम्राट के रूप में हमारे सामने आते हैं, सम्भव है वहाँ राजा नहुष गो-राज रहे हों। उनके पास गौओं की महती राशि रही हो और वे संभवतः उनका दान भी किसी न किसी रूप से करते रहे हों। यह अन्वेषण का विषय है कि ऋग्वेद में यत्र-तत्त उनके दान-विषयक बीज मिलते हैं अथवा नहीं। इस प्रकार 'घृताची' शब्द से भारत के प्राचीन वैदिक आर्यों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति पर भी सम्यक् प्रकाश पड़ता है ।।
४. पावीरवी यह विशेषण सरस्वती के लिए ऋग्वेद में केवल दो बार प्रयुक्त हुआ है । न केवल सरस्वती के साथ ही यह दो बार आया है, अपितु पूरे ऋग्वेद में यह प्रयोग केवल मात्र है । पहला मंत्र इस प्रकार है :
पावीरवी कन्या चित्रायुः सरस्वती वीरपत्नी धियं धात् । ग्नाभिरच्छिद्रं शरणं सजोषा दुराधर्षं गृणते शर्म संयत् ॥
ऋ० ६.४६.७ दूसरा मंत्र निम्न प्रकार है : पावीरवी तन्यतुरेकपादजो दिवो धर्ता सिन्धुरापः समुद्रियः । विश्वे देवासः शृणवन् वचांसि मे सरस्वती सह धीभिः पुरंध्या ॥
ऋ० १०.६५.१३ शब्द की व्याख्या भिन्न-भिन्न प्रकार से की गई है । कुछ लोग 'पावीरवी कन्या' दोनों को मिलाकर अर्थ करते हैं। इसके विपरीत कुछ लोग दोनों को अलग-अलग करके अर्थ करते हैं । सायण ने दोनों की सत्ता अलग-अलग मानी है। वह प्रथम मंत्र के 'पावीरवी' का अर्थ 'शोधयित्री' तथा 'कन्या का अर्थ 'कमनीया' करते हैं। दूसरे मंत्र के 'पावीरवी' का अर्थ 'आयुधवती' तथा 'तन्यतुः' का अर्थ 'स्तनयित्री' कर दोनों को 'चारमाध्यमिका' का विशेषण माना है-'पावीरवी आयुधवती तन्यतुः स्तनयिती वाग्माध्यमिका' । इसी प्रकार विल्सन पहले मंत्र के 'पावीरवी' का अर्थ 'प्युरिफाइङ्ग' अर्थात् शुद्ध करने वाली तथा दूसरे 'पावीरवी' का अर्थ 'आई' अर्थात् आयुधयुक्त करते है । गेल्डनर ‘पावीरवी' तथा 'कन्या' दोनों को संयुक्त कर 'पवीर की पुत्री' (?) ऐसा अर्थ करते हैं । स्वयं गेल्डनर पवीरु के अर्थ से निश्चित नहीं हैं, अत एव
२४. वही, ६.४६.७; १०.६५.१३