Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ समाज-व्यवस्था के सूत्र - 'सत्युग का अलंकारभूत राजा मान्धाता मर गया। समुद्र पर सेतु बाँधने और रावण को मारने वाला राम भी आज कहाँ है ? युधिष्ठिर आदि बड़े-बड़े राजा भी स्वर्ग चले गए। किसी के साथ यह राज्य, यह भूमि नहीं गई। लगता है कि यह तुम्हारे साथ अवश्य जाएगी ।' ६ वत्सराज पत्र लेकर राजा भुज के पास गया। राजा भुज को पत्र दे, अग्रिम आदेश की प्रतीक्षा करने लगा। दिन का समय था। मन का उत्तरायण चल रहा था। राजा भुज बोला- वत्सराज ! बालक भोज का वध अभी तक नहीं किया यह बहुत अच्छा हुआ। इस पत्र ने मेरी आँखें खोल दी हैं। चलो, मैं तुम्हारे साथ ही जंगल में चलता हूँ । महाराज भुज जंगल में आया और बालक भोज के सिर पर मुकुट रखकर कहा- तुम राज्य सँभालो, मैं संन्यास ग्रहण करता हूँ । आश्चर्य होता है कि ऐसा कैसे हुआ ? यह सारी करामात है मन के दक्षिणायन या उत्तरायण होने की । दक्षिणायन में आदमी ऐसी बात करेगा कि जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती और उत्तरायण में ऐसी बात करेगा कि हम समझ ही नहीं पाएँगे कि क्या यह वही आदमी है। आदमी तो वही होता है, पर उतार-चढ़ाव के कारण ऐसा सोच लिया जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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