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समाज-व्यवस्था के सूत्र
कुआँ पानी से भरा था। डोर और वाल्टी पड़ी थी। एक व्यक्ति प्यास से आकुल था। वह आया और पानी पिए विना वहीं वैठ गया। व्ह अमीरजादा था। इतने में ही नवाबजादा आया और वह भी पानी पिए वि। बैठ गया। एक शाहजादा आया और वह भी प्यासा ही बैठ गया। चौथी वार एक हरामजादा आया, पानी पिया और चलता बना। उसने कहा-मैं हरामजादा हूँ। स्वयं पीता हूँ, दूसरों को नहीं पिलाता।
प्रश्न होता है कि समाज में हरामजादों को किसने पैदा किया ? यदि समाज में अमीरजादा, नवावजादा और शाहजादा नहीं होते तो समाज में कभी हरामजादे पैदा नहीं होते। जो पदार्थ-प्रतिबद्ध समाज होता है, जहाँ पदार्थ साध्य बन जाता है, वहाँ कार्य-कारण की एक श्रृंखला चल पड़ती है। उसे कभी रोका नहीं जा सकता। वहाँ प्रतिक्रिया होती है।
. एक गाँव में एक सिद्धपुरुप आया। सारे गाँव में यह चर्चा हो गई कि जो माँगे वह सिद्धपुरुप देता है। जव यह पता लग जाए तो पदार्थ-प्रतिवद्ध मनुष्य को और क्या चाहिए ? माँग बनी रहती है। वह कभी छूटती नहीं। चाहे राजा हो, शहंशाह हो, अरवपति हो या और कुछ, माँग बनी की बनी रहती है। वे गरीब वने रहते हैं जो इच्छा के दास बने रहते हैं। लोग महात्माजी के पास आने लगे। महात्माजी की शर्त थी कि एक व्यक्ति को एक ही वरदान मिल सकता है। दो नहीं। उस गाँव की एक किसान की पत्नी आई। उसने सोचा-क्या माँगें। यदि माँगूंगी तो सारे घरवाले उसमें हिस्सा बँटाएँगे। सारा धन मेरा नहीं रहेगा। दूसरी मुसीवत यह होगी कि धन होते ही किसान दूसरी पत्नी ले आएगा। फिर मुझे कौन पूछेगा ? मैं तो ऐसा वर माँगूंगी कि पति का प्रेम दुगुना हो जाए। उसने सिद्धपुरुप से कहा--मुझे आप अत्यन्त रूपवती बना दें। सिद्धपुरुष ने कहा-तथास्तु। वह रूपवती स्त्री वन गई। अव वह अप्सरा-सी लगने लगी। वह दौड़ी-दौड़ी अपने खेत की ओर गई। उसका पति वहीं खड़ा था। उसने देखा कि एक रूपवती स्त्री आ रही है। वह साक्षात् देवी-सी लग रही है। वह तत्काल सामने गया और साप्टांग वन्दन करते हुए बोला-आपने मेरे पर अनुग्रह किया। आज मेरा भाग्य खुल गया कि साक्षात् देवी मरे खेत में आ गई। वह वोली-मैं देवी नहीं हूँ। में तो छोकरे की माँ हूँ। यह सुनते ही किसान ने पूछा-यह परिवर्तन कैसे हुआ ? वह वोली--सिद्धपरुप से रूप का वरदान मांगा और में अप्सरा-सी बन गई। किसान ने कहा-रांड, घर में खाने को दाने नहीं हैं, पहनने को पूरे
कपड़े नहीं हैं और तूने रूप का वरदान मांगा। धन माँगती तो गरीवी तो दूर . होती। क्या करोगी रूप का ? वह गुस्से में आगवबूला हो गया। वह दौड़ा-दौड़ा
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