Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 33
________________ २८ समाज-व्यवस्था के सूत्र और विनिमायक पर बहुत कम ध्यान दिया गया। इसीलिए इतनी विषमताएँ और अव्यवस्थाएँ उत्पन्न हुई हैं। जब तक व्यक्ति को बदलने की बात प्राप्त नहीं होती तब तक समस्याएँ सुलझती नहीं हैं। जब तक यह चेतन जो कर्ता है, जो करने वाला है, वह नहीं बदलेगा तो प्रणालियों के परिवर्तन से कुछ नहीं बनेगा, स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहेगी। एक भाई ने कहा-जब हम दीर्घश्वास प्रेक्षा कर प्रयोग करते हैं तब हमारा काभाव जाग जाता है। मैंने कहा-काभाव जरूरी है। यह बुरा नहीं है। जैन दर्शन मुक्त आत्मा को भी अकर्ता नहीं मानता। वह अपने स्वभाव का कर्ता तो है ही। हम अकर्ता नहीं हैं। जब तक हम शरीर से प्रतिबद्ध हैं तब तक अकर्ता हो नहीं सकते। हमें शरीर में जीना है तो कर्ता भाव छूट नहीं सकता। पर इतना हो सकता है कि हमारा ज्ञाताभाव और कर्ताभाव-दोनों साथ-साथ चलें। हम सचाई को स्वीकार कर चलें कि हम कर्ता हैं। पुनः प्रश्न उठता है कि क्या पदार्थ मुक्त समाज की कल्पना की जा सकती है ? क्या यह सम्भव है ? मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि विश्व में जितनी भी क्रान्तियाँ हुई हैं, चाहे फिर वे क्रान्तियाँ फ्रांस में या रूस में हुई हों या भारतवर्ष में हुई हों, वे क्रान्तियाँ किसी महान् दार्शनिक या साहित्यकार की विचारधारा से हुई हैं। फ्रांसिसी क्रान्ति का जनक था रूसो। मार्क्स की विचारधारा से रूस में क्रान्ति हुई। महावीर, बुद्ध, शंकर आदि महान् धर्मनेताओं के प्रवचनों के आधार पर भारत में क्रान्तियाँ हुईं, परिवर्तन हुए। क्रान्ति किसी न किसी विचारधारा के आधार पर होती है। यह जरूरी नहीं कि आज ही कोई नया विचार उत्पन हो और आज ही कोई क्रान्ति घटित हो जाए। सौ वर्ष बाद भी वह घटित हो सकती है और हजार वर्ष के बाद भी वह हो सकती है। मांसाहार के निषेध में सबसे पहले भगवान् महावीर ने आवाज उठाई। उस समय यह स्वर इतना सशक्त नहीं बना। पर आज यह स्वर अपने आप पूरे विश्व में सशक्त बन गया। चाहे मांसाहार पूर्ण रूप से छूटा या नहीं यह अलग बात है। पर आज मांसाहार-निषेध पर बड़े-बड़े आयोजन होते हैं, सेमिनार होते हैं और वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर यह प्रमाणित किया जाता है कि मांस मनुष्य का भोजन नहीं बन सकता, क्योंकि मनुष्य के शरीर की जो संरचना है वह मांसाहार के अनुकूल नहीं है। पर इस स्वर ने क्रान्ति का रूप लिया ढाई हजार वर्प के बाद । इसलिए हम सदा अच्छा सोचें, अच्छे विचार उत्पन्न करें, अच्छी कल्पनाएँ करें। इस बात को छोड़ दें कि ये विचार कब फलित होंगे। यह आकाशीय रेकार्ड भण्डार इतना विशाल है कि इसमें सभी विचार संग्रहीत होते हैं और कालान्तर में नई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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