Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ पदार्थ, इच्छा और प्रेक्षा ३६ आवश्यकता की चीजें सुलभ होनी चाहिए। इस विचार के आधार पर अनावश्यक चीजें अपने आप छूट जाती हैं। जिस राष्ट्र में इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता, वहाँ करोड़ों, लाखों लोगों को प्राथमिक आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त नहीं होती, या महँगी हो जाती हैं। और कुछेक व्यक्तियों को प्रसाधन की सामग्री इतनी प्रचुर मात्रा में मिलती है कि उनका सारा पैसा उसी में खर्च हो जाता है। इस स्थिति में समाज के सामने समस्या खड़ी हो जाती है। लगता है कि समाज जानबूझकर आँख-मिचौनी कर रहा है। गरीव राष्ट्र यदि प्रसाधन की सामग्री तथा साज-सज्जा की सामग्री जुटाने में व्यस्त रहता है तो भला लोगों को रोटी और कपड़ा कैसे सुलभ हो सकता है ? जनता इन प्राथमिक आवश्यकता की चीजों के लिए तड़पती रहती है और राष्ट्र कृत्रिम सुन्दरता के व्यामोह में फँसकर अनेक बुराइयों का घर बन जाता है। वह जान-बूझकर ही ऐसा करता है। एक अन्धा चौराहे पर भीख माँग रहा था। एक व्यक्ति ने उसके पात्र में अटन्नी डाली। अन्धा तत्काल बोला-अरे भाई ! यह नकली अटन्नी क्यों डाली ? वह व्यक्ति वोला-तुम तो अन्धे हो। कैसे पता लगा कि सिक्का नकली है ? वह वाला-मैं अन्धा नहीं हूँ। जो अन्धा प्रतिदिन यहाँ बैठता था वह आज सिनेमा देखने चला गया है। मैं उसके स्थान पर बैठा हूँ। जान-बूझकर आँखें मूंदी जा रही हैं। पहला भी आँखें मूंदकर बैठा था, दूसरा और तीसरा भी आँखें मूंदकर बैटा है। इस चक्र का कहीं अन्त नहीं है। इस समस्या का समाधान कैसे हो ? भगवान् महावीर ने हिंसा के विषय में विवेक देते हुए कहा--हिंसा के दो प्रकार हैं-अर्थहिंसा और अनर्थहिंसा। सामाजिक प्राणी अपने जीवन-यापन के लिए अर्थहिंसा करता है। वह इस प्रयोजन की हिंसा से बच नहीं सकता। क्योंकि उसे जीवन चलाना है। जीवन-यापन के लिए उसे खेती भी करनी पड़ती है, व्यापार और उद्योग भी करना पड़ता है, रसोई भी पकानी पड़ती है। वह इन सब प्रवृत्तियों से बच नहीं सकता। परन्तु वह अनर्थहिंसा से अवश्य बचे। अनर्थहिंसा जीवन-यापन के लिए आवश्यक नहीं होती। मनुष्य इससे वच सकता है। यह सुन्दर दृष्टिकोण है, सीमाकरण है। इसमें उच्छृखलता को कोई स्थान नहीं रहता और हिंसा का सीमाकरण हो जाता है। इसी प्रकार आवश्यक पदार्थों का उपभोग और अनावश्यक पदार्थों का त्याग-यह विवेक वहुत आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि आवश्यक क्या है और अनावश्यक क्या है ? यदि समाज में यह विवेक जाग्रत हो जाए कि अनावश्यक पदार्थों का उपभोग न हो, तो गरीवी की मात्रा में अन्तर आ सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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