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अस्तित्व और व्यक्तित्व
हमारे अस्तित्व के लिए किसी भी सन्दर्भ की जरूरत नहीं है। यह शाश्वत है, त्रैकालिक है, स्वतन्त्र है। उसके होने में किसी की अपेक्षा नहीं हैं। केवल होना, केवल है और कुछ नहीं चाहिए। उसके होने में न देश की अपेक्षा है, न काल की अपेक्षा है और न परिस्थिति की अपेक्षा है। वह देशातीत, कालातीत और परिस्थिति से अतीत है। ___दूसरा पहलू है-व्यक्तित्व। यह देश, काल और परिस्थिति सापेक्ष होता है। यह सन्दर्भ से जुड़ा हुआ होता है। मनुष्य का व्यक्तित्व है और उसका एक सम्दर्भ है समाज। समाज के सन्दर्भ में उसका व्यक्तित्व बनता है सामाजिक । अर्थ के सन्दर्भ में उसका व्यक्तित्व बनता है आर्थिक, राजनीति के सन्दर्भ में राजनैतिक और अध्यात्म के सन्दर्भ में आध्यात्मिक बनता है। उसके व्यक्तित्व के चार आयाम हो गए
१. सामाजिक व्यक्तित्व २. राजनैतिक व्यक्तित्व ३. आर्थिक व्यक्तित्व और ४. आध्यात्मिक व्यक्तित्व व्यक्तित्व का यह वर्गीकरण बहुत स्पष्ट है।
प्रत्येक व्यक्ति समाज में जीता है, इसलिए सामाजिक होना स्वाभाविक है। समाज के सन्दर्भ को छोड़कर कोई भी व्यक्ति अकेला जी नहीं सकता। कोई भी व्यक्ति हिमालय की कन्दरा में बैठ जाए तो भी वह समाज के साथ ही जीता है। जो कुछ आ रहा है वह समाज से आ रहा है। इसलिए सामाजिक व्यक्तित्व एक सहज बात है। सामाजिक व्यक्तित्व के साथ एक समस्या जुड़ी हुई है और वह है-स्वार्थ। स्वार्थ सामाजिक व्यक्तित्व है। उसके साथ सत्ता भी जुड़ी हुई है। यद्यपि समाज का अर्थ है स्वार्थ का विस्तार, स्वार्थ का विलीनीकरण। आदमी अकेला नहीं है। वह समाज के अनेक लोगों के साथ जी रहा है। वह समाज में जी रहा है और व्यक्ति की सीमा को जानकर जी रहा है। इसलिए सामाजिकता और
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