Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 60
________________ विरोधाभासी जीवन प्रणाली शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का जीवन जी सकता है। भोजन से रक्त बनता है। आसन और व्यायाम से रक्त का अभिसरण होता है। श्वास से रक्त का शोधन होता है। तीनों बातें जुड़ी हुई हैं-रक्त का निर्माण, रक्त का अभिसरण और रक्त का शोधन । कहा जाता है-ब्रीथिंग इज प्यूरीफिकेशन-श्वास रक्त का शोधन कर उसे सभी दोषों से मुक्त करता है। जब श्वास दीर्घ नहीं होता है तो प्राणवायु पूरी भीतर नहीं जाती और यदि श्वास दीर्घ नहीं छोड़ते हैं तो पूरा कार्बन बाहर नहीं आता। रक्त की पूरी शुद्धि नहीं होती। जब रक्त शुद्ध होता है तो मन की प्रवृत्ति अपने आप कम होने लग जाती है। जब रक्त दूषित होता है तो मन में बुरे विचार आते हैं और मन का चक्का कभी बन्द नहीं होता। मानसिक प्रवृत्ति को कम करना उसकी निवृत्ति करना है। इसी प्रकार वाणी और काया की प्रवृत्ति को कम करना उसकी निवृत्ति करना है। प्रवृत्ति और निवृत्ति का सन्तुलन-यह है ध्यान का रहस्य। जिस व्यक्ति ने ध्यान करना नहीं सीखा, उसने सही ढंग से जीना नहीं सीखा। अच्छा जीवन वह होता है जहाँ प्राणशक्ति स्वस्थ होती है। ध्यान, आसन और प्राणायाम के बिना प्राणशक्ति स्वस्थ नहीं रह सकती। एक प्रश्न आता है कि प्रेक्षाध्यान के प्रयोगकाल में आसन, प्राणायाम, कायोत्सर्ग, खाद्य संयम, आचाम्ल आदि तपस्याएँ कराई जाती हैं। इन सबका प्रयोजन क्या है ? इतने सारे क्यों ? केवल ध्यान और कायोत्सर्ग ही कराया जाता तो ठीक नहीं था क्या ?. हमारी प्रकृति विरोधाभासी है। एक से काम नहीं चलता, अनेक चाहिए। जैसे भोजन के साथ अनेक चीजों का होना अनिवार्य है, वैसे ही ध्यान के साथ भी अनेक चीजें चाहिए। एक से काम पूरा नहीं होता। ध्यान से पूर्व शोधन अपेक्षित होता है। जव तक शोधन की प्रक्रिया नहीं होती, तब तक ध्यान ठीक प्रकार से नहीं होता। तपस्याएँ शोधन के लिए कराई जाती हैं। मलों का निष्कासन आवश्यक होता है। उनके जमाव से अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। अतः उनकी शुद्धि के लिए अनेक साधन अपनाए जाते हैं। अपानवायु की शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाता है। और इसके लिए भोजन की शुद्धि अपेक्षित होती है। स्वस्थ जीवन, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा शान्तिमय जीवन का पहला सूत्र है-अपान की शुद्धि। जिसका अपानवायु दूषित है उसके प्राणवायु में भी विकृति आने लगेगी। दूषित अपानवायु के कारण व्यक्ति कभी शान्त जीवन नहीं जी सकता। यद्यपि डॉक्टर इस तथ्य को नहीं मानते पर यह यथार्थ है। इस प्रदूषण को मिटाए बिना स्वास्थ्य की कल्पना नहीं की जा सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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