________________
समाज-निर्माण के दो घटक
१. व्यक्ति का समर्पण
दुनिया में सबसे कठिन काम है निर्माण करना। निर्माण में भी सबसे कठिन होता है व्यक्ति का निर्माण और दृष्टिकोण का निर्माण। व्यक्ति के पास स्व-निर्माण के लिए बहुत कम समय बचता है।
जोधपुर नरेश मानसिंहजी के पास एक चौधरी ने आकर एक पैसा फेंका और कहा-'महाराज ! राज्य का इतना ही हक है। नरेश देखते रह गए। उन्होंने सोचा, इतना ही हक कैसे ? चौधरी बोला- हुजूर ! एक रुपया हम कमाते हैं तो उसमें से आठ आना हाकिम को, चार आना पटवारी को, दो आना कोतवाल को
और एक आना चपरासी को देना पड़ता है। पीछे चार पैसे बचते हैं। तीन पैसे हम रखते हैं तो एक पैसा पीछे बचता है, वह सरकार के खजाने के लिए है।'
व्यक्ति की भी यही अवस्था है। उसके पास तीन पैसे बचते हैं, शेष दूसरों को देना पड़ता है। किसी को आठ आने, किसी को चार आने और किसी को एक आना। एक रुपया आएगा तो आठ आने वासनाओं को, चार आने आहार की लोलुपता को, दो आने व्यर्थ की बातों को और एक आना आलस्य और प्रमाद को देना पड़ता है। फिर अपने लिए एक आना बचता है। व्यक्ति का निर्माण कैसे हो, बड़ी कठिनाइयाँ हैं। व्यक्ति अपने लिए कुछ भी नहीं बचा पाता।
आयुर्वेद में एक मार्मिक प्रसंग आता है कि चरक ने 'राजयक्ष्मा' रोग की चर्चा की उसकी चिकित्सा बताने से पूर्व उन्होंने एक अवतरणिका लिखी। वह मार्मिक है। लगता है वह अवतरणिका आयुर्वेद ग्रन्थ की नहीं, किसी धर्म-ग्रन्थ की
है।
__शिष्य ने पूछा-'गुरुदेव ! यह राजयक्ष्मा रोग क्यों होता है ? कैसे होता है ?' गुरु ने कहा- एक बार देवताओं और महर्षियों में इस विषय की चर्चा चली। देवताओं ने मर्म बताते हुए कहा, सबसे पहले इस राजरोग की बीमारी चन्द्रदेव को हुई। उसका कारण था कि राजा चन्द्रदेव ने २८ विवाह किए। वह अपने शरीर की चिन्ता छोड़कर विषय भोग में रत रहने लगा। उसका सारी वीर्य और ओज समाप्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org