Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 92
________________ भोगवादी संस्कृति और सामाजिक सम्बन्ध ८७ प्रमुखा रहती हैं। सम्बन्धित ग्रुप के साधु-साध्वियों के सिवाय अन्य साधु-साध्वियों को वहाँ नहीं रखा जाता। यह पूछा एकान्त में होती है। इस पृच्छा में आचार्यश्री को बहुत समय लगाना पड़ता है और फिर साधु-साध्वियों के उचित स्थान का गहरा चिन्तन कर उन्हें फिट करना होता है। किस साधु को किस साधु के पास फिट करना उचित रहेगा और किस साध्वी को किस साध्वी के पास फिट करना उचित रहेगा, इसका गहरा चिन्तन करना पड़ता है। इस चिन्तन में व्यक्ति की प्रकृति का पूरा लेखा-जोखा कर लेना होता है। यह सबसे कठिन कार्य है। अचेतन को काट-छाँटकर फिट किया जा सकता है, पर चेतन की काट-छाँट बड़ी कठिन होती है। चेतन में परस्पर सामंजस्य स्थापित करना, तनावों को दूर करना, मानसिक सामंजस्य बिठाना, बहुत बड़ी समस्या है। यदि इसका कोई गुर हमें मिल जाए तो मानवीय सम्बन्धों में सुधार किया जा सकता है। ऐसा होने पर पचास प्रतिशत बीमारियाँ स्वतः निरस्त हो जाती हैं, मानसिक समस्याएँ भी समाहित हो जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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