Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 82
________________ अणुव्रत का अभियान और साम्यवाद ७७ चिरकाल से आध्यात्मिक रहा है। भारतीय लोग जो शान्तिप्रिय हैं, इसका कारण उनकी आध्यात्मिक परम्परा है। आर्थिक साम्य सुख-सुविधा के साधन प्रस्तुत कर सकता है। आध्यात्मिक साम्य शान्ति या मानसिक सन्तुलन का साधन है। पहले धारणाएँ बदलती हैं, फिर व्यवस्था। परिस्थितियों का परिवर्तन हुए बिना मनुष्यों का परिवर्तन नहीं होता। परिस्थितियाँ नैतिकता के अनुकूल होती हैं, मनुष्य नैतिक बनता है। वे उसके प्रतिकूल होती हैं, मनुष्य अनेतिक बनता है, यह बहुतों की धारणा है। यह परिस्थितिवाद है। भौतिकवाद का उत्कर्ष इसी धारणा से हुआ है। अणुव्रत-आन्दोलन परिस्थितिवाद का प्रचार नहीं करता। वह आध्यात्मिक है, परिस्थितियों की अनुकूलता से उसका कोई विरोध नहीं है। किन्तु उनकी अनुकूलता में ही मनुष्य नैतिक रह सकता है-इस धारणा से विरोध है। मनुष्य परिस्थितियों की उपज नहीं है। उसका स्वतन्त्र अस्तित्व है। भोग-वृत्ति से वह दुर्बल बनता है, कठिनाइयों को सहन करने की क्षमता नष्ट हो जाती है, मनुष्य परिस्थिति से दब जाता है। आध्यात्मिकता का प्रवेश-द्वार है-त्याग। त्याग से आत्मा का बल बढ़ता है। आत्म-बल का मतलब है-भौतिक आकर्पण का अभाव । पदार्थ का आकर्षण मनुष्य में दैन्य भरता है। पदार्थ का आकर्षण टूटता है, आत्मबल का सहज उदय हो जाता है। आत्मोदय की धारणा में परिस्थिति गौण बन जाती है। ___ यह सच है, परिस्थिति की प्रतिकूलता जनसाधारण के लिए एक प्रश्न है। किन्तु मनुष्य को परिस्थिति का दास बनाकर उसे नहीं सुलझाया जा सकता। परिस्थिति के रूपान्तर से मनुष्य की वृत्ति का रूपान्तर हो जाता है। वह कोई नैतिक विकास नहीं है। साम्यवादी अर्थ-तन्त्र में एक प्रकार की अनैतिकता मिट जाती है, पर क्या अनैतिकता के सभी प्रकार मिट जाते हैं ? क्या उस व्यवस्था में अपराध और अपराधी नहीं होते ? क्या राजनैतिक स्पर्धा नहीं होती ? एकतन्त्र एक परिस्थिति पैदा करता है, जनतन्त्र दूसरी । पूँजीवाद एक परिस्थिति पैदा करता है, साम्यवाद दूसरी। इनमें नैतिकता के एक रूप का विकास होता है तो उसके दूसरे रूप का विनाश भी होता है। अनैतिकता का एक रूप मिटता है तो दूसरा रूप उभरता भी है। यह परिस्थितिवाद की देन है। उसे मुख्य मानकर चला जाए तो वह रुकेगी नहीं। आध्यात्मिकता परिस्थिति-निरपेक्ष है। मनुष्य आत्मा है। उसकी क्षमता असीम है। वह प्रतिकूल परिस्थिति में भी नैतिक रह सकता है। अणुव्रत-आन्दोलन का ध्येय है-इस श्रद्धा को जगाना। नैतिकता-विकास का प्रश्न सामाजिक प्रश्न है। आध्यात्मिकता यद्यपि वैयक्तिक होती है, किन्तु आध्यात्मिकताहीन व्यक्ति स्वतन्त्र भाव से नैतिक नहीं हो सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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