Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 79
________________ अणुव्रत का अभियान और साम्यवाद 'अनुत्तरं साम्यमुपैती योगी'-योगी अनुत्तर साम्य को पाता है। साम्य का प्रयोग बहुत प्राचीन काल से चलता आ रहा है। जैनों की भाषा में अहिंसा और समता एक है। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु, निन्दा-प्रशंसा और मान-अपमान में जो सम रहे, वही अहिंसा की आराधना कर सकता है। राग-द्वेष आवेगात्मक वृत्तियाँ हैं। इनसे परे रहने का जो भाव है, मध्यस्थता है, वही साम्य है। गीता में 'समत्व' का योग कहा गया है। साम्यवाद आज के दलित-मानस का प्रिय शब्द है। कुछ लोग साम्यवाद से घबराते भी हैं। दिल्ली में आचार्यश्री से एक व्यक्ति ने पूछा- 'क्या भारतवर्ष में साम्यवाद आएगा ?' आचार्यश्री ने कहा-'आप बुलाएँगे तो आएगा, नहीं तो नहीं।' उत्तर सीधा है। कार्य को समझने के लिए कारण को समझना चाहिए। साम्यवाद का कारण है-पूँजीवाद। दो-सौ वर्ष पहले पूँजीवाद इस अर्थ में रूढ़ नहीं था, जिस अर्थ में आज है। १७६१ में भाप का आविष्कार हुआ। उसके साथ-साथ पूँजीवाद आया। इससे पहले यातायात के साधन अल्प वेग वाले थे। संग्रह के साधन सुलभ नहीं थे। सहजभाव से विकेन्द्रित स्थिति थी। वाष्प-युग ने यन्त्र-युग का रूप लिया। वर्तमान युग यन्त्र-युग है। इस युग में यातायात के साधन वेगवान् बने और बनते जा रहे हैं। विश्व सिमट गया। यन्त्रों द्वारा कार्य होने लगा। कार्य करने की क्षमता मनुष्यों से हटकर. मशीनों में आ गई। पूँजी का संग्रह सुलभ हो गया। व्यक्ति-व्यक्ति के पास जो सम्पत्ति थी, वह कुछ ही व्यक्तियों के पास चली गई। सहज ही दो वर्ग बन गए-पूंजीपति और मजदूर। पहले बड़े नगर कम थे, गाँव अधिक। मिलों ने गाँवों को खाली किया। नगरों की आवादी बढ़ गई। हजारों मजदूर एक साथ काम करने लगे। इस परिस्थिति से उन्हें मिलने, संगठित होने और वर्ग बनाने का अवसर मिला । वर्ग-संघर्प का बीज जड़ पकड़ गया। पूँजीवाद का परिणाम है-वेकारी या उत्पादन की कृत्रिम आवश्यकता। मनुष्य का काम यन्त्र करने लगे तब हजारों का जीवन साधन एक व्यक्ति के पास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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