Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ समाज-व्यवस्था के सूत्र हेमारा जीवन है प्राण । हमारी जीवनी-शक्ति ही हमारा जीवन है। यह प्रथम है और शेष सारे द्वयम् हैं। प्राण है तो जीवन है। प्राण नहीं है तो जीवन नहीं है। फिर चाहे कितना ही अन्न-पानी मिले, दवा-ऑक्सीजन मिले, जीवन नहीं होता। जब यह बात स्पष्ट समझ में आ जाती है तब आदमी का ध्यान प्राण-शक्ति पर केन्द्रित हो जाता है। अन्यथा उसका ध्यान अच्छे अन्न, अच्छे पानी और अच्छी दवाइयाँ आदि-आदि में ही अटका रह जाता है। वह अपनी सारी शक्ति इनकी प्राप्ति में ही नियोजित कर देता है। और तब मूल बेचारा उपेक्षित ही रह जाता है। मूल है प्राण। उसकी उपेक्षा होने के कारण अन्यान्य साधन भी बेकार हो रहे हैं। ध्यान का प्रयोग प्राण-शक्ति को विकसित करने का प्रयोग है, प्राण-शक्ति को रोकने का प्रयोग है। ध्यान के द्वारा प्राणशक्ति का सम्यक् नियोजन किया जा सकता है, सही कामों में उसे लगाया जा सकता है और विवेक की चेतना जगाई जा सकती है। जब यह विवेक की चेतना जागती है तब प्राणशक्ति का अपव्यय रुक जाता है। आदमी नहीं जानता कि उसकी प्राण-शक्ति का कितना अपव्यय होता है। मन में बुरा विकल्प आता है, प्राण-शक्ति का वहुत क्षरण होता है। इन्द्रिय के असंयम से, अधिक बोलने से, अनिष्ट चिन्तन करने से, शरीर की चंचलता से, अत्यधिक कल्पना से प्राण-शक्ति का अत्यधिक व्यय होता है। ध्यान करने का अर्थ है-प्राण-शक्ति का संयम करना, प्राण-शक्ति का क्षरण करने वाली प्रवृत्तियों का संयम करना। ध्यान का प्रयोजन है-मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्ति और निवृत्ति में सन्तुलन स्थापित करना। आज का आदमी केवल प्रवृत्ति की बात सोचता है कि आज कितना श्रम किया ? कितना हुआ ? क्या हुआ ? वह निवृत्ति की बात नहीं सोचता। वह नहीं जानता कि प्रवृत्ति और निवृत्ति का जोड़ा है, श्रम और विश्राम का जोड़ा है। दोनों विरोधी हैं, पर इन विरोधाभासों से हटकर हम जीवन नहीं जी सकते। हमारी पूरी जीवन प्रणाली विरोधाभासों पर टिकी हुई है। श्रम के बिना जीवन नहीं चलता तो विश्राम के बिना भी जीवन नहीं चलता। हम मान लेते हैं कि हृदय धड़कता है इसलिए हम जी रहे हैं। चौबीस घण्टों में हृदय केवल आठ घण्टा धड़कता है और सोलह घण्टा विश्राम करता है। श्रम और विश्राम-दोनों चलते हैं। बल्कि आठ घण्टा श्रम और सोलह घण्टा विश्राम चलता है। मन चौबीस घण्टा स्मृति, चिन्तन या कल्पना में फंसा रहता है। ऐसी स्थिति में प्राण-शक्ति का अपव्यय कैसे नहीं होगा ? यदि हम मन को आठ घण्टा श्रम में लगाए रखें और सोलह धण्टा विश्राम दें, स्मृति, चिन्तन या कल्पना से मुक्त रखें तो हमारे लिए ध्यान करना कोई आवश्यक नहीं होगा। __ प्रदूषण के इस युग में जो व्यक्ति अपने रक्त को शुद्ध रखता है वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98