________________
विरोधाभासी जीवन प्रणाली
वर्तमान का समाज औद्योगिक विकास का समाज है। पदार्थों का विकास हुआ है तो साथ ही साथ विषाक्तता और प्रदूषण का भी विकास हुआ है। आज जल भी दूषित है तो वायुमण्डल भी दूषित है। इस विकास के दु' में क्या कोई ध्यान की संगति है ? इस प्रश्न का तात्पर्य है कि ध्यान के लिए विशुद्ध वातावरण की आवश्यकता होती है। आज के इन औद्योगिक नगरों में शुद्ध वायुमण्डल की कल्पना ही बेकार है। नगर ही क्यों, पूरे वायुमण्डल में अणुधूली फैली हुई है। इस स्थिति में शुद्ध वायुमण्डल की कल्पना व्यर्थ है। आज सारी चीजें अशुद्ध हैं। ऐसी स्थिति में ध्यान, आसन और प्राणायाम करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। क्योंकि प्राणायाम में अधिक से अधिक प्राणवायु ली जाती है। पर आज प्राणवायु अधिक जाती है या कार्बन-यह कहना कठिन है। . इस युग में पदार्थों की संख्या बढ़ी है। सुविधा की साधन-सामग्री में विकास हुआ है। विद्यालय और अस्पताल बढ़े हैं। तो साथ ही साथ अज्ञान और बीमारियों का भी विकास हुआ है। आज मच्छर भी दवा प्रतिरोधी बन गए हैं। जो दवाइयाँ मच्छरों का.सफाया कर डालती थीं, वे दवाइयाँ आज निरर्थक हो गई हैं। मच्छरों की नई सन्तति ने उनको बेकार कर डाला है। यह संसार विरोधाभासों का संसार है। इस संसार में एक बात कोई रहती नहीं। विरोधी बात ही यहाँ टिक पाती है। अनेकान्त सिद्धान्त के अनुसार विरोधी युगल ही वास्तविक है। विरोधी नहीं है तो एक का कोई अस्तित्व ही नहीं होता। इसीलिए यह विरोधाभासों का जीवन, विरोधी जीवन प्रणाली चल रही है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। यह जगत् ही स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्रश्न होता है कि क्या इसमें सामंजस्य का कोई सूत्र खोजा जा सकता है। इसका उत्तर होगा, अवश्य खोजा जा सकता है। हमें विरोधों के बीच रहना है, जीना है। विरोध होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। कोरा रोग हो और दवा न हो, यह कभी नहीं होगा। केवल दवा हो और रोग न हो, यह भी कभी नहीं होगा। दोनों साथ-साथ चलेंगे। प्यास हो और पानी न हो, यह नहीं हो सकता। पानी हो और प्यास न हो, यह भी कभी नहीं हो सकता। प्यास भी है, पानी भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org