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समाज-व्यवस्था के सूत्र
नीला और अरुण-तीनों रंग आ गए, ये रंग आकाश से नहीं, भीतर से आते हैं। जब अभ्यास गहरा होता है तब-तब ऐसे चमकीले रंग दिखाई देते हैं जो वाहरी दुनिया में है ही नहीं। इसी प्रकार भीतर की सुगन्ध जब उभरती है तव बाहर की सारी सुगन्धे फीकी पड़ जाती हैं।
नासाग्र पर ध्यान करते हुए जब अपनी श्वास की गंध का अनुभव होता है तब ऐसा लगता है कि ऐसी गंध सामने कभी नहीं आई।
जैसे-जैसे भीतर का अनुभव जागता है, वैसे-वैसे बाहर का आकर्षण कम होता जाता है। सामान्यतः सत्ता का आकर्षण, धन का आकर्षण, परिवार का आकर्षण नहीं छूटता, किन्तु जब भीतर का आयाम खुलता है तब परिवर्तन सहज सुलभ हो जाता है। विना उपदेश या प्रयत्न के परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है, दिशा बदल जाती है। आकर्षण बदलते ही दिशा बदल जाती है। हम एक गंतव्य की
ओर चलते हैं तब जहाँ से चलते हैं, वह शनैः शनैः दूर होता जाता है और गंतव्य निकट आता जाता है। जोधपुर से हम जयपुर की ओर चलते हैं। दस-बीस किलोमीटर चलते हैं तो जोधपुर पीछे होता जाता है, दूर होता जाता है और जयपुर निकट आता जाता है। यह दिशा-परिवर्तन के कारण होता है। जिसकी ओर अभिमुखता होती है वह निकट आ जाता है और जिसकी ओर पीठ होती है वह दूर होता जाता है। यह शाश्वत क्रम है। मुनि का एक विशेषण है-'संसार स्यूँ अपूठा, मोक्ष स्यूँ सामा'-अर्थात् मुनि संसार की ओर पीठ कर चलते हैं और उनकी अभिमुखता होती है मोक्ष की ओर। उनके लिए मोक्ष निकट होता जाता है और संसार दूर होता जाता है।
सबसे बड़ी बात है आकर्षण का बदल जाना। जब तक हम बाहर ही बाहर देखते रहेंगे, भीतर देखने का प्रयत्न नहीं करेंगे तब तक समाज में, अर्थ-व्यवस्था में और राजनीति में पलने वाले विरोधाभास समाप्त नहीं होंगे। उन विरोधाभासों में सामंजस्य स्थापित करने का एक मात्र उपाय है आध्यात्मिक विकास करना। किन्तु आज का आदमी इसे उपेक्षित कर रहा है।
___ मैंने चार प्रकार की अन्धता की बात कही। पाँचवीं अन्धता है-'पश्यत्रपि न पश्यति'-देखता हुआ भी नहीं देख पाता। यह योग-साधना की उत्कृष्ट उपलब्धि मानी जाती है। पर सामान्य पुरुषों के लिए यह अन्धता है। वे केवल बाहर देखते हैं और भीतर देखने के लिए वे अन्धे हैं। उनके पास भीतर देखने की आँख नहीं है। त्राटक दो प्रकार के होते हैं। एक त्राटक बाहर किया जाता है और दूसरा त्राटक भीतर किया जाता है। जब आदमी अपनी आँखों पर त्राटक करता है तब वह आँखों के भीतर देखना शुरू करता है, चाक्षुष केन्द्र में ध्यान का प्रयोग
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