Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 54
________________ अस्तित्व और व्यक्तित्व ४६ आदमी दोषों को नहीं देख पाता। जिसमें स्वार्थ प्रबल हो जाता है, वह अपने स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं देख पाता। समाज की प्रकृति है-स्वार्थ का सीमाकरण । इसी के आधार पर समाज का निर्माण होता है। जहाँ स्वार्थ का सीमाकरण नहीं होता वहाँ वास्तव में समाज वनता ही नहीं। और यदि बनता है तो उसमें अनेक विकृतियाँ आ जाती हैं। जब आध्यात्मिक व्यक्तित्व का विकास होता है तब दूसरे सारे व्यक्तित्व पवित्र वन जाते हैं। केवल आर्थिक व्यक्तित्व, केवल सामाजिक व्यक्तित्व या राजनैतिक व्यक्तित्व से समाज ठीक चल नहीं सकता। तीनों जीवन के अभिन्न अंग हैं। पर जब चौथे व्यक्तित्व-आध्यात्मिक व्यक्तित्व का विकास होता है तब तीनों सन्तुलित रहते हैं। आज सबसे बड़ी समस्या यही है कि एक व्यक्तित्व पर ज्यादा भार लाद दिया जाता है और शेष व्यक्तित्वों की उपेक्षा की जाती है। आज तीनों व्यक्तित्वों पर बहुत भार लाद दिया गया है। इतना भार कि वे बेचारे सहन ही नहीं कर पा रहे हैं। चौथा व्यक्तित्व उपेक्षित पड़ा है। यह अनुभव ही नहीं हो पा रहा है कि उसकी भी कोई आवश्यकता है। जब तब आध्यात्मिक व्यक्तित्व की बात नहीं जुड़ती तब तक तीनों व्यक्तित्व सदोप बन जाते हैं, तीनों की मर्यादाएँ लड़खड़ा जाती हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है। प्रेक्षा-ध्यान का प्रयोग न सामाजिक है, न आर्थिक है और न राजनैतिक। यह आध्यात्मिक प्रयोग है। आदमी तीन व्यक्तित्वों में, आयामों में जी रहा है। यदि चौथा आयाम खुल जाए तो कितना कल्याण हो सकता है ? जैसे विज्ञान के चौथे आयाम-देश-कालातीत आयाम से सारी अवधारणाओं में परिवर्तन हो गया, वैसे ही इस चौथे आयाम-आध्यात्मिक आयाम से व्यक्तित्व का पूरा निर्माण हो सकता है, तीनों व्यक्तित्व परिष्कृत हो सकते हैं और जीवन की नई दिशा उद्घाटित हो सकती है। प्रेक्षा-ध्यान का प्रयोग भीतर जाने का प्रयोग है, अध्यात्म का प्रयोग है। जब व्यक्ति अपने भीतर देखना शुरू करता है तब देखने का एक नया आयाम खुलता है। हम प्रकाश को देखते हैं, सूरज और चाँद को देखते हैं। दीए और बिजली को देखते हैं। ये सब बाहर के प्रकाश हैं। हमने भीतर के प्रकाश को नहीं देखा। जब हम ध्यान का प्रयोग कर भीतर की गहराइयों में उतरते हैं तब ऐसा अनुभव होता है कि प्रकाश बाहर ही नहीं है, भीतर भी प्रकाश का अजस्र स्रोत है। इन्द्रधनुष को देखा है, सतरंगी दुनिया को देखा है। जब हम लेश्या ध्यान का प्रयोग करते हैं तो लगता है कि सारे रंग भीतर भी हैं, इन्द्रधनुष भी है और सतरंगी दुनिया भी है। लेश्या-ध्यान के साधक ने कहा-ध्यान किया और तीनों रंग उभर आए। हरा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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