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समाज-व्यवस्था के सूत्र
जुड़ता चला जाता है। दुःखी आदमी को दूसरा कोई न कोई चाहिए, जिससे कि वह अपना दुःखड़ा सुना सके, कम कर सके। आदमी दुःख को बाँटना चाहता है और सुख को अकेले ही बटोरना चाहता है ।
धन आदमी को अन्धा बना डालता है। धनी व्यक्ति अपने पुराने मित्रों को भी नहीं पहचान पाता। वह केवल धनी या धन को पहचानता है और किसी को भी नहीं ।
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..एक गाँव में दो मित्र रहते थे। दोनों में प्रगाढ़ मित्रता थी । एक मित्र गाँव को छोड़कर शहर में चला गया । भाग्य ने साथ दिया और उसने अपार धन कमा लिया। गाँव वाला वैसा का वैसा रह गया। कुछ काल बीता। गाँव वाले मित्र के मन में मित्र से मिलने की इच्छा जागी। वह चला। शहर में पहुँचा और पूछता- पूछता मित्र की कोठी पर गया। प्रहरी ने सूचना दी, एक व्यक्ति गाँव से आया है और वह अपने आपको आपका परम मित्र बता रहा है। वह आपसे मिलने के लिए बड़ा उत्सुक है। धनी मित्र ने कहा- अभी नहीं । दो-तीन बार ऐसा ही हुआ। दो घण्टा बीत गया। चौथी बार वह गरीब मित्र के सामने आया । धनी मित्र ने उसे देखा अनदेखा कर डाला। गरीब मित्र ने अपना परिचय दिया । धनी बोला-कौन हो तुम ? मैं नहीं जानता । तुम गलत स्थान पर आ गए हो । गरीब मित्र धनी मित्र की बातें सुनकर अवाक् रह गया। उसने सोचा- कितनी घनिष्ठ मित्रता थी । और आज यह मुझे मित्र कहने में भी सकुचा रहा है। वह बोला- मित्र ! मैं तुमसे केवल मिलने आया था, माँगने नहीं । मैंने सुना था कि मेरा मित्र अन्धा हो गया है, इसलिए में देखने आया था कि वास्तव में वह अन्धा हो गया है या नहीं । यहाँ आने पर मुझे विश्वास हो गया है कि मेरा मित्र बिलकुल अन्धा हो गया है। अब मैं जा रहा हूँ । इस अन्धेपन का कोई इलाज नहीं है 1
संस्कृत कवि ने एक श्लोक में कहा है
'नैव पश्यति जन्मान्धो, कामान्धो नैव पश्यति । न पश्यति मदोन्मत्त, अर्थी दोषान् न पश्यति ॥'
चार प्रकार के अन्धे होते हैं-जन्मान्ध, कामान्ध, मदोन्मत्त और स्वार्थी । जन्मान्ध व्यक्ति कभी देखता नहीं । उसकी विवशता है। जन्म से अन्धा है । इसी प्रकार जब व्यक्ति काम से अन्धा होता है, उस समय उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता । यह दूसरी अन्धता है। तीसरी अन्धता है मदोन्मत्तता । मदोन्मत्त व्यक्ति की आँखें ऊँची चढ़ी रहती हैं। वह कुछ भी नहीं देख पाता। व्यक्ति चाहे जाति के मद से उन्मत्त हो, सम्पत्ति के मद से उन्मत्त हो, विद्या अहंकार के मद से उन्मत्त हो, वह उन्मत्त व्यक्ति नहीं देख पाता। चौथी अन्धता है-स्वार्थपरायणता । स्वार्थी
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