Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 61
________________ समाज-व्यवस्था के सूत्र - हमारे शरीर में नाना प्रकार के विष जमा होते हैं । आ का मेडिकल साइंस और आयुर्वेद विज्ञान- दोनों इसमें सहमत हैं। हमारी धमनियों और शिराओं में, चूने जैसा एक विष जमा होता है। उसके जमा होने का नाम ही है बुढ़ापा, आलस्य । वह जैसे-जैसे जमा होता है, वैसे-वैसे रक्त के अभिसरण में अवरोध पैदा होता है । जब रक्त का सही संचार नहीं होता तब शरीर का अवयव रोगग्रस्त हो जाता है। आलस्य, प्रमाद, दर्द, अनुत्साह, बेचैनी - ये सब जमे हुए विष के कारण होते हैं। आसन और व्यायाम के कारण इस विष का निराकरण किया जाता है । आसन, व्यायाम आदि क्रियाओं से विष चू-चूकर मूत्र से, मल से, पसीने से बाहर निकल जाता है और तब रक्त का संचरण सहज हो जाता है। ५६ शरीर की स्थूलता या भारीपन को मिटाने के लिए प्राणायाम अचूक साधन है । 'प्राणायामात् लाघवं ' - प्राणायाम से हल्कापन आता है। अकड़न - जकड़न सब मिट जाती है। जो व्यक्ति केवल रेचन या भस्त्रिका का प्रयोग करता है वह अनुभव कर सकता है कि उसका शरीर कितना हल्का हो जाता है । इन सारी दृष्टियों से यह आवश्यक है कि ध्यान के प्रयोग के साथ-साथ अन्यान्य प्रयोग भी चले । इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है । प्राप्त प्रणाली की समग्रता बहुविध विकास के लिए बहुत आवश्यक है I 'ध्यानात् प्रत्यक्षमात्मनि' - ध्यान से सचाइयों का साक्षात्कार होता है। भीतर में जो कुछ हो रहा है, उसका पता चल जाना ध्यान का परिणाम है। एक है साक्षात्कार और एक है उस स्थिति में चले जाना जहाँ विचारों का प्रवाह बन्द हो जाए । यह है एकाग्रता । लम्बी एकाग्रता का नाम है समाधि और समाधि का परिणाम है- अनासक्ति का विकास । ध्यान के ये विभिन्न प्रयोग समग्रता की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । प्रेक्षा के साथ अनुप्रेक्षा का भी योग है। अनुप्रेक्षा है विकल्पात्मक, विचारात्मक । अनित्य अनुप्रेक्षा, एकत्व अनुप्रेक्षा, अशरण अनुप्रेक्षा आदि-आदि अनुप्रेक्षाएँ बहुत मूल्यवान् हैं। इनके अनुशीलन से आदतं वदलती हैं। यदि बुरे स्वभाव को बदलना है और नये स्वभाव का निर्माण करना है, तो हमें एक विकल्प चुनना होगा । विकल्प वह होगा जो बुरे विकल्प को तोड़ सके ओर उसके स्थान पर अच्छे विकल्प को अभिरूढ़ कर सके। अच्छा विकल्प बुरे विकल्प को नष्ट कर देता है । प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा- दोनों के योग से एक समग्र प्रक्रिया बनती है। इस प्रक्रिया में विकल्प को भी स्थान है और निर्विकल्प को भी स्थान है। विचार और निर्विचार दोनों के लिए स्थान है। प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों स्वीकृत हैं। आसन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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