Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ महावीर की समाज-व्यवस्था ७१ ने आचार-संहिता में सामयिक मूल्यों की चर्चा नहीं की। सामयिक मूल्य परिवर्तनशील होते हैं, बदलते रहते हैं। उन्हें स्थायित्व नहीं दिया जा सकता। जहाँ परिवर्तनशील व्यवस्था को शाश्वत का रूप दिया जाता है वहाँ समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और उनका समाधान नहीं होता। सामयिक व्यवस्थाओं के आधार पर कभी भी शाश्वत का निर्णय नहीं किया जा सकता और शाश्वत नियम के आधार पर सामयिक व्यवस्थाओं को नहीं तोला जा सकता। व्रत की आचार-संहिता में दो व्रत और अधिक मूल्यवान् हैं। एक है-'भोग-उपभोग की सीमा' और दूसरा है-'अनर्थदण्ड की सीमा' । आज की सबसे बड़ी समस्या है अनर्थदण्ड । वर्तमान युग में अनावश्यक हिंसा बहुत हो रही है, अनावश्यक संग्रह बहुत हो रहा है, अनावश्यक उत्पादन बहुत हो रहा है, अनावश्यक विक्रय बहुत हो रहा है। बहुत बड़ी समस्या है अनावश्यक उत्पादन और अनावश्यक भोग । पेट भरने को रोटी नहीं, इतनी गरीबी, दूसरी ओर प्रसाधन की सामग्री का प्रयोग। क्या फ्रिज के बिना काम नहीं चल सकता ? क्या लिपिस्टिक के बिना काम नहीं चल सकता ? क्या प्रसाधन की सामग्री के बिना काम नहीं चल सकता ? क्या साज-सज्जा के बिना काम नहीं चल सकता ? एक भाई ने बताया कि मकान तो बन गया है अब उसे फर्निस्ड करना है। उसमें १२ लाख रुपये लगेंगे। केवल साज-सज्जा के लिए १० लाख रुपये ! जहाँ हजारों-हजारों लोगों को झोंपड़ी भी प्राप्त नहीं होती वहाँ केवल साज-सज्जा के नाम पर करोड़ों रुपये चाहिए। यह अनावश्यक हिंसा, अनावश्यक संग्रह विग्रह पैदा करता है समाज में। इस अनावश्यक व्यय से समाज की व्यवस्था चरमरा जाती है। हिंसा, अपराध, चोरी, डकैती, आक्रमण, उपद्रवियों का तांता जो वना हुआ है, उसके पीछे समाज की अव्यवस्था भी एक बहुत बड़ा कारण है। व्यक्तिगत भोग की लालसा इतनी बढ़ गई, व्यक्तिगत भोग इतना बढ़ गया कि व्यक्ति अकंला खाना चाहता है, अकेला भोगना चाहता है और जहाँ अकेले खाने, अकेले भोगने की बात होगी वहाँ समाज में प्रतिक्रिया हुए बिना रह नहीं सकती। ___ महामान्य चाणक्य ने कौटिल्य अर्थशास्त्र में लिखा है कि जो राजा, जो शासक और जो बड़ा व्यापारी या बड़ा आदमी अकेला रोटी खाना जानता है वहाँ विद्रोह होगा, हत्याएँ होंगी। खाता भी है, और दूसरों को खिलाता है, वहाँ कभी विद्रोह नहीं होगा। राजनीति का एक बड़ा सूत्र है-स्वयं खाना और दूसरों को खिलाना। समाज में जो स्वार्थवादी मनोवृत्ति बन गई, स्वयं भोग करना, अपने आपको एशो-आराम में रखना, एक-एक विवाह मण्डप में १०-१० लाख रुपये मात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98