Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 42
________________ पदार्थ, इच्छा और प्रेक्षा भगवान् महावीर ने प्रवृत्तियों के चार प्रकार बतलाए हैं १. आपात सुन्दर, परिणाम असुन्दर । २. आपात असुन्दर, परिणाम सुन्दर । ३. आपात सुन्दर, परिणाम सुन्दर । ४. आपात असुन्दर, परिणाम असुन्दर । कुछेक प्रवृत्तियाँ ऐसी होती हैं जिनका प्रारम्भ प्रिय और इष्ट होता है । पर उनका परिणाम अच्छा नहीं होता, प्रिय नहीं होता। कुछेक प्रवृत्तियों का प्रारम्भ असुन्दर होता है, अच्छा नहीं होता, पर उनका परिणाम अच्छा होता है, सरस होता है । कुछेक प्रवृत्तियों का प्रारम्भ प्रिय होता है और परिणाम भी प्रिय होता है कुछेक प्रवृत्तियों का न प्रारम्भ अच्छा होता है और न परिणाम कल्याणकारी होता है। ये चार प्रकार की प्रवृत्तियाँ हैं और इनके चार परिणाम हैं। I हम इनमें से चुनाव करें। जिनका प्रारम्भ भी इप्ट नहीं है और परिणाम भी इष्ट नहीं होता, व प्रवृत्तियाँ सर्वथा हेय होती हैं। जिनका प्रारम्भ भी अच्छा होता है और परिणाम भी अच्छा होता है, वे प्रवृत्तियाँ सर्वथा उपादेय होती हैं। दो विकल्प शेष रहते हैं । जिस प्रवृत्ति का प्रारम्भ सुन्दर होता है, पर परिणाम विरस होता है, वह भी करणीय नहीं होती। पर सामाजिक व्यक्ति उसे छोड़ नहीं सकता । इसे सर्वथा हेय नहीं कहा जा सकता। जो प्रवृत्ति प्रारम्भ में नीरस होती है, पर जिसका परिणाम सरस होता है, वह भी आचरणीय होती है। नीम खाने में कडुआ लगता है पर उसका परिणाम अच्छा होता है । हरड, वेहरड, आँवला, त्रिफला आदि स्वादिष्ट नहीं होते, पर परिणाम काल में वे लाभदायी होते हैं। चीनी खाने में मीठी होती है, अच्छी लगती है, पर उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। इससे दाँत और आँत खराब होती है, अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं, तो आपात प्रिय होना एक बात है और परिणाम - प्रिय होना दूसरी बात है । जो समाज व्यवस्था प्रियता और आकर्षण के आधार पर चलती है वह प्रारम्भ में प्रिय लगती है, पर उसका परिणाम अच्छा नहीं होता अन्ततः वह एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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