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समाज-व्यवस्था के सूत्र
हैं। तथा अनावश्यक पदार्थों की उत्पादक कम्पनियाँ और वितरित करने वाली दुकाने स्वतः बन्द हो जाएँगी। और तब केवल आवश्यकता का भान होगा और उस पर ही ध्यान केन्द्रित होगा। ऐसे बहुत सारे लोग हैं, पी वार हैं जिन्हें जीवन की अनिवार्य बातें-मकान, कपड़ा, भोजन और पढ़ाई प्राप्त नहीं है पर शराब, सिगरेट, गर्म और शीतल पेय-इनमें सारा पैसा खर्च हो जाता है। उनकी गरीबी कभी मिटती नहीं। जब तक समाज में यह चेतना जाग्रत नहीं की जाएगी कि प्राथमिकता आवश्यक चीजों को दी जाए और फिर पैसा बचे तो कुछेक अनावश्यक मानी जाने वाली वस्तुओं पर खर्च हो। जिस समाज में इन्द्रियलोलुपता पर कोई अंकुश नहीं होगा, वह समाज उत्तरोत्तर विनाश की ओर बढ़ेगा।।
इन्द्रिय-संयम केवल संन्यासी और तपस्वी के लिए ही जरूरी नहीं है। एक सीमा तक यह पूरे समाज के लिए जरूरी है। यह शासक के लिए भी जरूरी है और शासित के लिए भी जरूरी है। जो व्यक्ति या परिवार इन्द्रिय-संयम का अभ्यास नहीं करता, उस परिवार में समस्याएँ पैदा होती हैं, लड़ाई-झगड़े होते हैं और इसी के कारण जाति, समाज और राष्ट्र में विप्लव होता है।
इस दृष्टि से एक सीमा तक इन्द्रियों पर रोक लगाना, आसक्ति पर अंकुश लगाना बहुत आवश्यक है। अनासक्ति का सिद्धान्त बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसका व्यावहारिक रूप बन सकता है अनावश्यक वस्तुओं के वर्जन से। किस व्यक्ति के मन में कितनी आसक्ति है उसकी पहचान नहीं की जा सकती। हर व्यक्ति अपने आपको अनासक्त मान सकता है। अनासक्ति की पहचान व्यवहार से की जा सकती है। जो व्यक्ति अनावश्यक वस्तुओं का उपभोग करता है वह आसक्त है और जो अनावश्यक वस्तुओं का उपभोग नहीं करता, उसके जीवन में अनासक्ति का सिद्धान्त उतरा है।
आज आर्थिक विकास का आधार है-पदार्थ का उत्पादन, आर्थिक वस्तुओं का विज्ञापन और वितरण तथा मनुष्यों में अनावश्यक वस्तुओं के प्रति आकर्षण एवं भूख पैदा करना। ये सारी बातें जीवन में अनेक समस्याएँ पैदा कर देती हैं।
. आज उद्योग के क्षेत्र में एक नई समस्या आ रही है। और वह है जीन की समस्या। आज जीन के विकास के साथ-साथ एक नई टेक्निक का विकास हो रहा है। जीन इंजीनियरिंग की पूरी जानकारी मनुष्य ने हस्तगत कर ली है। अब इसके आधार पर नई चीजों का निर्माण कर कम्पनियाँ उन्हें पेटेण्ट कर लेंगी और उससे अपार धनराशि प्राप्त कर धनकुबेर बन जाएँगी। आर्थिक लाभ बहुत होगा पर लोगों के लिए समस्या हो जाएगी।
आज अनेक वैज्ञानिक जीन के विकास के साथ-साथ जीन के प्रत्यारोपण
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