Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 35
________________ प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन आचार्य तुलसी ने जीवन विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण त्रिपदी दी । उसके तीन पद हैं (१) चिन्ता नहीं, चिन्तन करो । (२) व्यथा नहीं, व्यवस्था करो । (३) प्रशस्ति नहीं, प्रस्तुति करो । चिन्तन, व्यवस्था और प्रस्तुति - ये विकास के कारण बनते हैं तथा चिन्ता, व्यथा और प्रशस्ति-ये अवरोध के कारण बनते हैं । चिन्तन करना पहली बात है। हम किसी भी बात को स्वीकारें तो पहले चिन्तन करें, केवल अन्धानुकरण न करें । मनुष्य व्यथा की बात पग-पग पर प्रगट करता है, पर व्यवस्था पर ध्यान नहीं देता । महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि शिकायत या व्यथा नहीं व्यवस्था करें। मनुष्य जब तक जिन्दा है, तब तक शिकायत मरेगी नहीं । आदमी के साथ-साथ चलेगी। जहाँ अपूर्णता है वहाँ शिकायत के लिए सदा अवकाश है। आदमी पूर्ण होने का नहीं तो शिकायत कभी बन्द होने को नहीं । पर जिसका ध्यान व्यवस्था की ओर चला जाता है, उसकी शिकायतें कम होती जाती हैं और जो व्यवस्था करना नहीं जानता, वह सदा शिकायत ही करता रहता है। प्रशस्ति की बात बहुत होती है। जो धार्मिक होगा वह धर्म की बहुत प्रशस्ति करेगा, गुणगान करेगा, धर्म को ही सब कुछ बताएगा । अर्थशास्त्री कहेगा कि सारा समाज अर्थ व्यवस्था के आधार पर ही चल रहा है। अर्थ-व्यवस्था नहीं होती तो समाज कभी चल नहीं पाता। जो जिस विषय का व्यक्ति है वह उस विषय की प्रशस्ति करता है । पर सबकी अपनी-अपनी सीमा है। धर्म की एक सीमा है तो अर्थ-व्यवस्था की भी एक सीमा है, सब कुछ धर्म से नहीं होता। धर्म से भूख-प्यास नहीं मिटती। सर्दी लग रही है तो धर्म से सर्दी नहीं मिटेगी। हमें प्रस्तुतकीरण करना चाहिए। किस प्रस्ताव में कौन-सी बात उपयोगी होती है, यह जानना आवश्यक है। प्रकरण, प्रसंग और प्रस्ताव को जानना और फिर प्रस्तुत करना यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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