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प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।
विकास के तीन सूत्र हैं-चिन्तन, व्यवस्था और प्रस्तुति '
वर्तमान का युग चिन्तन, व्यवस्था और प्रस्तुति का युग है। इस युग में चिन्तन का बहुत विकास हुआ। आज बुद्धि का विकास हुआ है इसलिए चिन्तनशील लोगों की कमी नहीं है। आज व्यवस्था की भी कमी नहीं है। व्यवस्था के कोर्स कराए जाते हैं। स्थान-स्थान पर प्रशिक्षण केन्द्र चल रहे हैं। व्यवस्था सिखाई जाती है। आदमी प्रस्तुतीकरण में भी निडर हो चला है। इसलिए आर्थिक तथा अन्यान्य विकास हो सका है। पुराने जमाने में कुछेक लोग धनवान होते थे। वर्तमान में अधिक संख्या में लोग धनवान् हैं। धन के स्रोत बढ़े हैं। सम्पदा की व्यवस्था में सुधार हुआ है। आय बढ़ी है। पर इसके साथ प्रतिस्पर्धा का भी विकास हुआ है। पुराने जमाने में प्रतिस्पर्धा नहीं थी, क्योंकि न कोई अर्थ-व्यवस्था जैसी चीज थी और न अर्थशास्त्र का इतना विकास था। आज हजारों अर्थशास्त्री और हजारों अर्थशास्त्र के ग्रन्थ मिलते हैं। प्राचीनकाल में पाँच-दस अर्थशास्त्रियों के नाम तथा पाँच-दस ग्रन्थों के नाम मिलते हैं। आज अर्थशास्त्र के ग्रन्थ तथा अर्थशास्त्रियों-दोनों की संख्या बढ़ गई है। अर्थ-व्यवस्था के नियमों का भी विकास हुआ है। जहाँ एक बात का विकास होता है वहाँ समस्याएँ भी पैदा हो जाती हैं। आज की समस्या है-प्रतिस्पर्धा । प्राचीनकाल में आर्थिक प्रतिस्पर्धा इतनी नहीं थी जितनी आज है। जहाँ आर्थिक प्रतिस्पर्धा बढ़ती है वहाँ साधन-शुद्धि का भाव विलुप्त हो जाता है। यह सबसे बड़ी क्षति आ जाती है। जो समाज-व्यवस्था व्यक्ति को सत्यनिष्ठा की
ओर ले जाती है, साधन-शुद्धि की ओर ले जाती है, वह समाज-व्यवस्था मानव के लिए कल्याणकारी है। जो समाज-व्यवस्था साधन-शुद्धि के विचार को समाप्त करती है, सत्यनिष्ठा को समाप्त करती है, उस समाज व्यवस्था का अन्तिम परिणाम दुःखद और अहितकर होता है। इस आर्थिक प्रतिस्पर्धा ने साधन-शुद्धि के विवेक को समाप्त कर डाला। इस प्रतिस्पर्धा ने 'येनकेन प्रकारेण धनं स्यात' की वृत्ति को विकसित किया और उसका परिणाम है अनैतिकता और अप्रमाणिकता का बोलबाला।
दो हजार वर्ष या दो सौ वर्ष पुराने आदमी की और आज के आदमी की तुलना की जाय तो सबसे बड़ा अन्तर यह लगेगा कि प्राचीनकाल के आदमी में जो सत्यनिष्ठा थी वह आज के आदमी में नहीं है। पहले आदमी घबड़ाता था कि उसके हाथ से कोई बुरा काम न हो जाए। झूठ न बोलना पड़े। आज यह निष्ठा समाप्त हो गई। आज वह आदमी अधिक कुशल और व्यावहारिक माना जाता है जो झूठ बोल सकता है, बात को छिपा सकता है। सत्य बोलने वाला कायर समझा
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