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प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन
समस्या भौतिक और कारण मानसिक। यह महत्त्वपूर्ण सूत्र है चिन्तन का कि समस्या है भौतिक और कारण है मानसिक।
किसी ने गोली चलाई और आदमी मर गया। अब इस घटना पर विचार करें। आदमी में आवेश नहीं होता तो गोली नहीं चलती। बन्दूक नहीं होती, गोली नहीं होती तो गोली नहीं चलती। इसका विश्लेषण करते-करते हम इस चिन्तन पर पहँचते हैं कि यदि बारूद का आविष्कार नहीं होता तो इतना अनर्थ नहीं होता। इस आविष्कार की जननी कौन ? उत्तर मिलता है बुद्धि । तो फिर दोषी कौन ? दोषी है वह बुद्धि जिसने संहारक अस्त्र का आविष्कार किया। समस्या भौतिक जगत् में शुरू हुई और अटकी बुद्धि पर। जो कि मानव का आन्तरिक तत्त्व है। मनुष्य में प्रदर्शन की भावना है, वह बुद्धि के साथ जुड़ी हुई है। यह मानसिक समस्या है। वस्तु का प्रदर्शन बाहरी बात है। किन्तु प्रदर्शन की मनोवृत्ति आन्तरिक समस्या है।
आज भौतिक समस्याओं पर बहुत ध्यान केन्द्रित किया जाता है। पर समस्याओं को पैदा करने वाली जो मनोवृत्ति है, उसकी उपेक्षा की जाती है। आन्तरिक समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता तब तक मनुष्य शान्ति से नहीं जी सकता और न ही समस्याओं का समाधान ही होता है। समस्याएँ आती रहती हैं, मिलती रहती हैं।
एक लड़के ने पिता से पूछा-पिताजी ! आपका जन्म कहाँ हुआ ? मद्रास में। मम्मी का जन्म हुआ ? कलकत्ता में। और मेरा जन्म कहाँ हुआ ? बम्बई में। तो हम तीनों मिल कैसे गए ?
बहत बड़ी अपेक्षा है कि हम आर्थिक समस्या के साथ मानवीय समस्या का भी योग करें। ऐसा करने पर ही समाधान ठीक निकल सकता है। यदि दोनों का योग नहीं होगा तो केवल समाज-व्यवस्था और राज्य-व्यवस्था पर ही ध्यान जाएगा और आन्तरिक समस्या उपेक्षित रह जाएगी। तब परिणाम स्वस्थ नहीं निकलेगा।
आर्थिक विकास के लिए आर्थिक प्रतिस्पर्धा का सूत्र बन गया। विकास के लिए स्पर्धा आवश्यक भी है। विकास और स्पर्धा-दोनों साथ-साथ चलते हैं। यदि प्रतिस्पर्धा और विकास मनुष्य को केन्द्र में रखकर होता है तो कोई अनिष्ट परिणाम नहीं आता। किन्तु जहाँ केन्द्र में पदार्थ आकर बैठ जाता है और उसको भोगने वाला मनुष्य केन्द्र से हटकर परिधि में चला जाता है, वहाँ सारी समस्याएँ पैदा होती हैं। आज मनुष्य कहीं और किसी केन्द्र मे नहीं है। सर्वत्र पदार्थ ही केन्द्र में बैठा है। चैतन्य केन्द्र में नहीं है। जड़ है केन्द्र में। बेचारा मनुष्य और चैतन्य परिधि में चले गए हैं, ढकेल दिए गए हैं। इसका कारण है कि हमने दहमत को
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