Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 30
________________ समाज-व्यवस्था के दो सूत्र - सिद्धपुरुष के पास गया और मुझे भी एक वरदान दो । सिद्धपुरुष ने कहा- माँगो | वह किसान बोला- भगवन् आपने जिस स्त्री को रूप का वरदान दिया है, उस स्त्री को गधी बना दें। सिद्धपुरुष ने कहा - तथास्तु । वह रूपवती स्त्री तत्काल गधी बन गई। और खेत में चरने लग गई। किसान दौड़ा-दौड़ा आया और गधी को मारने पीछे दौड़ा। गधी आगे दौड़ने लगी। इतने में ही किसान का पुत्र आ गया। पिता से पूछा कि तुम गधी के पीछे क्यों दौड़ रहे हो ? किसान ने कहा- यह गधी नहीं, तेरी माँ है। उसने सारी रामकहानी कह सुनाई। बेटा असमंजस में पड़ गया। वह भी सिद्धपुरुष के पास गया और वोला- महात्माजी ! आपने मेरी माँ को और पिता को वरदान दिया था। अब आप कृपा कर मुझे भी एक वरदान दें कि हम पहले जैसे थे, वैसे के वैसे बन जाएँ। सिद्धपुरुष ने कहा - तथास्तु । सब कुछ पूर्ववत् हो गया । जहाँ समाज की स्थितियाँ प्रतिक्रियात्मक बनती हैं, पदार्थ प्रतिवद्धता का विकास होता है, पदार्थ सब कुछ बन जाता है, वहाँ पहला वरदान मिलता है हिंसा का, विध्वंस का और दूसरा वरदान मिलता है विध्वंसक शस्त्रास्त्रों के निर्माण का । तीसरे वरदान की परिकल्पना नहीं की जा सकती । व्यक्ति प्रस्तर युग से चला और आज अणुयुग तक पहुँच गया। अब आगे कहाँ पहुँचेगा, कहा नहीं जा सकता । अनेक वैज्ञानिकों ने कहा है कि अब जब कभी युद्ध होगा, वह प्रस्तरों से लड़ा जाएगा। वहाँ हम जैसे थे वैसे वन जाएँगे। ये सारी प्रतिक्रियाएँ पदार्थ- प्रतिबद्धता के कारण होती हैं । आज दृष्टिकोण बदल गया । चंचलता, आवेश, प्रमाद और इच्छा - इनके निमित्त से समाज का दृष्टिकोण बदल गया। आज यह मानदण्ड बन गया कि अधिक उत्पादन, अधिक क्षमता का विकास और अधिक भोग । उसकी प्रतिक्रिया होती है। उसे कोई टाल नहीं सकता। इसके प्रतिकूल यदि कोई बात कही जाती है तो आदमी सोचता है कि यह विकासवादी युग की वात नहीं है । यह तो वीते युग की वात है, पिछड़ेपन की बात है । I अब हम पदार्थ मुक्त समाज की कल्पना करें। पर प्रश्न होता है कि जव तक शरीर है तब तक पदार्थ मुक्त कैसे हुआ जा सकता है ? पदार्थ से कोई छूट नहीं सकता, चाहे गृहस्थ हो या संन्यासी । सव पदार्थ का उपभोग करते हैं। पदार्थ से सर्वथा छुटकारा असम्भव है। इस स्थिति में पदार्थमुक्त समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है ? हम इसे समझें। पदार्थमुक्त समाज में पदार्थ जीवनयापन का साधन मात्र बना रहता है, साध्य नहीं बनता। उसमें साध्य होता है-चारित्र और नैतिकता का विकास, आध्यात्मिकता का विकास। पदार्थ साधन मात्र रहता है। ऐसी स्थिति में पहला परिणाम क्या आता है ? Jain Education International २५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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