________________
समाज-व्यवस्था के सूत्र
जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवहुई।
दो मास कयं कज्जं कोडिए वि न निट्ठियं ॥ जहाँ लाभ होता है वहाँ लोभ बढ़ता है। आग में ईंधन डालते जाओ, वह कभी नहीं बुझेगी। आग तब बुझती है जब उसे ईंधन नहीं मिलता।
कपिल राजा के पास आया। राजा ने कहा-बोलो, मेरे से क्या चाहते हो ? कपिल ने कहा-“राजन् ! कुछ भी नहीं चाहता। कुछ क्षणों पूर्व मन में असीम माँग थी, पर अब वह मिट चुकी है, शान्त हो चुकी है। अब मुझे सवा मासा सोना भी नहीं चाहिए। मैं घर भी नहीं जा रहा हूँ। मुझे अब उस जीवन में जाना है जहाँ चाह नहीं है।"
___व्यक्ति की आकांक्षा अनन्त होती है। वह सब कुछ चाहता है। पर जब उसमें कुछ भी न पाने की बात आ जाती है तो उसकी चाह समाप्त हो जाती है। बड़े-बड़े अनेक साधकों ने प्रभु की प्रार्थना करते हुए कहा-प्रभो ! मुझे ऐसी शक्ति दें कि मेरे मन में चाहने की चाह मिट जाए।
जब तक चाहने की चाह बनी रहती है तब तक समस्या नहीं सुलझती। "कुछ न चाहूँ"-यह चाह पैदा हो जाए। अन्ततः चाह को चाह से ही मिटाना होगा। विकल्प विकल्प से ही समाप्त होता है। एक क्षण में ही आदमी निर्विकल्प नहीं बन जाता। इसके लिए अनेक भूमिकाओं को पार करना होता है। पहले विकल्प फिर उस विकल्प को काटना जरूरी है। प्रश्न है कि किससे काटा जाए। शस्त्र से शस्त्र कटता है। आचारांग का वाक्य है- “अत्थि सत्थं परेण परं" एक तेज शस्त्र दूसरे शस्त्र को काट देता है। जहर से जहर का शमन होता है। इस प्रकार विकल्प से विकल्प कटता है। अच्छा विकल्प आया तो बुरा विकल्प समाप्त हो गया।
जव सत्य का साक्षात्कार होता है, तब आदमी बदल जाता है। जब तक सत्य परोक्ष रहता है, आदमी नहीं वदलता। बदलने में दो-चार घण्टे नहीं लगते, वर्ष-दो वर्प नहीं लगते। बदलने का एक क्षण आता है और आदमी बदल जाता है। लड़ाई भी एक क्षण में होती है तो मैत्री भी एक क्षण में होती है। ऐसा नहीं होता कि लड़ाई करने में वर्ष लगे या मैत्री करने में वर्ष लगे। ये सब तत्काल होने वाली घटनाएँ हैं।
मूलभूत समस्या है-मानसिक । आर्थिक समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। क्यों ? अर्थशास्त्री नए-नए फार्मूल और सिद्धान्त प्रस्तुत कर रहे हैं, पर समस्या नहीं सुलझ रही है। यहाँ हमें मुड़कर सोचना होगा कि जब तक अर्थशास्त्रियों के सिद्धान्तों के साथ-साथ अध्यात्म के सिद्धान्तों का समीकरण नहीं बिठाया जाएगा,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org