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वास्तविक समस्या-आर्थिक या मानसिक
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उसकी पत्नी गर्भवती थी। पास में कुछ था नहीं, व्यवस्था करनी थी। बड़ी आकांक्षा लेकर आया। उसे समय का पता ही नहीं चला। जैसे ध्यान में कालबोध नहीं होता, वैसे ही धन की आकांक्षा में भी कालबोध समाप्त हो जाता है। कपिल को आना चाहिए था चार बजे, पर आकांक्षा की तीव्रता के कारण काल का ज्ञान नहीं रहा और वह बारह बजे ही वहाँ आ पहुँचा। वहाँ के आरक्षकों ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया। प्रातः राजा के सम्मुख उसे उपस्थित किया गया। राजा ने उसका पूरा वृत्तान्त सुना। राजा का मन करुणा से भर गया। उसने कहा-"मैं बहुत प्रसन्न हूँ, तुम्हारी सचाई पर। जो चाहो सो माँगो।" कपिल बोला, "मैं एकान्त में सोचकर बताऊँगा।" वह एकान्त में चला गया। उसने सोचा, जब राजा सन्तुष्ट है तो सवा मासा सोना ही क्यों माँगा जाए। आखिर इतने से सोने से होगा क्या ? उसने सोचा, एक तोला सोना माँग लूँ। नहीं, नहीं, दस तोला माँग लूँ। नहीं, यह भी थोड़ा होगा। राजा जब देना ही चाहता है तो दस हजार माँग लूँ, नहीं, नहीं, एक लाख, एक करोड़, रुपये माँग लूँ। ये भी कम होंगे। आकांक्षा भीतर ही भीतर बढ़ती जा रही है। उसने सोचा पाँच-दस करोड़ माँग लूँ। नहीं, नहीं पाँच-दस करोड़ की पूँजी वाले अन्यान्य मिल जाएँगे। अच्छा है कि मैं राजा का राज्य माँग लूँ। फिर मेरे से कोई बड़ा नहीं रहेगा। मन में यह बात पक्की ऊंच गई। उसने सोचा, राजा को कह दूँ कि सत्तान्तरण, स्थानान्तरण हो जाए। मैं राज-सिंहासन पर बैठ जाऊँ और आप मेरे सामने नीचे बैठ जाएँ। यह विकल्प आया।
पर आदमी में केवल वृत्ति ही नहीं होती, विवेक भी होता है। वृत्ति के साथ पवित्रता भी होती है। यदि आदमी में कोरी वृत्ति ही होती तो वह पश से भी बदतर बन जाता। मनुष्य में ही नहीं सभी प्राणियों में दो धाराएँ चलती हैं। एक है-वृत्तियों की धारा और दूसरी है पवित्रता की धारा। दोनों पक्ष-शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष-उसमें होते हैं। जीवन में कोरा कृष्ण पक्ष-अँधेरा ही अँधेरा नहीं होता, शुक्ल पक्ष-प्रकाश भी होता है। आवरण और अनावरण-दोनों साथ-साथ चलते हैं। मलिनता और निर्मलता दोनों चलती हैं।
कपिल कृष्ण पक्ष या आवरण से प्रभावित होकर राजा के राज्य को हड़प जाना चाहता था। शुक्ल पक्ष या अनावरण का क्षण आया और उसने सांचा-कपिल ! कहाँ से कहाँ छलाँग भर दी। आए थे सवा मासा स्वर्ण लेने के लिए, पर तुमने राजा के राज्य को ही माँगने का निश्चय कर डाला। कपिल मुड़ा। जीवन में प्रकाश जागा, अनुभव जागा। जव अनुभव जाग जाता है तब जीवन बदल जाता है। उसने अपने अनुभव की वाणी में गुनगुनाया
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