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अर्थ-व्यवस्था के सूत्र और प्रेक्षा
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पड़े हैं। घडे पडे हैं। कंकड फेंका और घड़े को फोड़ डाला। यह शक्य है, पर करणीव नहीं है। सारे शक्य-कार्य करणीय नहीं होते। शक्य होना एक बात है
और करणीय होना दूसरी बात है। शक्य होने पर भी वही काम करणीय है जिसका परिणाम अच्छा होता है, दूसरे का अनिष्ट नहीं होता। जहाँ शक्य और करणीय का विवेक नहीं होता वहाँ अनर्थ घटित होता है।
- इसी विवेक के अभाव में मना ने एक ऐसी संस्कृति को जन्म दे दिया है जो उस ही निगलने को तैयार हो रही है। ऐसी संस्कृति को जन्म देना तो शक्य था पर करणीय नहीं था, क्योंकि आज निगले जाने का परिणाम उसे ही भुगतना पड़ रहा है।
चार मित्र थे। तीन वुद्धिहीन वैज्ञानिक थे और एक बुद्धिमान् अवैज्ञानिक। चारों घूमने निकले। एक घने जंगल में गए और सघन वृक्ष के नीचे बैठ गए। इतने में ही एक की दृष्टि वहाँ पड़ी जहाँ शर की अस्थियों का पूरा ढाँचा पड़ा था। शेर को मरे कुछ समय बीत गया था। उसने कहा-देखो, आज विद्या की परीक्षा का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। शेर को जीवित कर सकते हैं। एक वैज्ञानिक मित्र बोला, मैं इसमें मांस का संचार कर सकता हूँ। दूसरा बोला, मैं इसमें रक्त को प्रवाहित कर सकता हूँ और तीसरा बोला, मैं इसमें प्राण भर सकता हूँ। तीनों ने सोचा, परीक्षण होगा। कुतूहल होगा, चमत्कार होगा। चौथा वोला-यह मत करो। ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है। शेर जीवित होगा और हमें ही अपना शिकार बनाएगा। यह आत्मघाती प्रयत्न हैं। ऐसा मत करो। तीनों एक साथ वोले-तुम मुर्ख हो, अवैज्ञानिक हो। तुम नहीं जानते सदा निषेध ही निषेध करते रहते हो। सृजन करना महान् कार्य है। हम मरे हुए शेर को जिन्दा कर रहे हैं, कम काम नहीं है। वह बोला-मैं जानता हूँ कि निर्माण करना बहुत बड़ा काम है। पर मैं यह भी जानता हूँ कि वह निर्माण खतरनाक होता है जो विध्वंस को जन्म देता है। इस निर्माण की परिणति है-विध्वंस । निर्माण सदा अच्छा ही नहीं होता और विध्वंस सदा वुरा ही नहीं होता। विध्वंस भी अच्छा हो सकता है, और निर्माण भी बुरा हो सकता है। उसने बहुत समझाया, पर तीनों मित्र उसकी बेसमझी की मजाक करते रहे। तीनों उस शेर के कलेवर के पास पहुंचे। चौथा अवैज्ञानिक मित्र ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया। एक ने उसमें मांस का, दूसरे ने उसमें रक्त का संचार किया। तीसरे ने ज्योंही उसमें प्राण का संचार किया, शेर जीवित हो उठा और दहाड़ने लगा। तीनों अपनी सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त कर ही रहे थे कि शेर ने तीनों का काम समाप्त कर अपनी भूख शान्त की। पेड़ पर बैठे अवैज्ञानिक, किन्तु बुद्धिमान् मित्र, अपने तीनों साथियों की मूर्खता
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