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अर्थ-व्यवस्था के सूत्र और प्रेक्षा
करना है जिससे चेतना का रूपान्तरण हो ।
सबसे अधिक अनर्थ करने वाली दो वृत्तियाँ हैं- लोभ की वृत्ति और इच्छा की वृत्ति । ये जन्म देती हैं क्रूरता को । संवेदनशीलता से ही यह बदल सकती हैं। इस सन्दर्भ में ध्यान एक जीवन दर्शन की नई प्रणाली है। जीवन की जितनी प्रणालियाँ हैं- आर्थिक प्रणालियाँ और राजनेतिक प्रणालियाँ - इन सबमें दीपों का परिमार्जन करने वाली है ध्यान की प्रणाली ।
ध्यान का मूल प्रयोजन है - चेतना का रूपान्तरण, वृत्तियों का परिष्कार । पहला परिष्कार है- लोभ का और स्वार्थ का ।
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