Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ १० समाज-व्यवस्था के सूत्र समस्या है ? मैं कहूँगा यह मूलभूत समस्या नहीं है। मूलभूत समस्या है-मानसिक। मानसिक समस्या ही आर्थिक समस्या को जन्म देती है। यही जनक समस्या है। गरीबी, विषमता, बेईमानी और छीना-झपटी क्यों हैं ? क्या ये सब अर्थ के अभाव में होते हैं ? नहीं, ऐसा नहीं लगता। वास्तविकता यह है कि धनी व्यक्ति जितना बेईमान है उतना गरीब व्यक्ति नहीं है। यह सचाई है, क्योंकि गरीब आदमी की आकांक्षाएँ, कल्पना और दौड़ बहुत सीमित होते हैं। बुद्धिमान् और धनवान आदमी जितनी अप्रामाणिकता और बेईमानी कर सकता है, उतनी कम पढ़ा-लिखा और गरीव आदमी नहीं कर सकता। तो यह अर्थ है कि जटिलता शायद गरीबी के साथ जुड़ी हुई नहीं है। यह जुड़ी हुई है मानसिकता के साथ । तो मौलिक समस्या है मानसिक।। दो समीकरण हैं। एक है-आवश्यकता और पदार्थ तथा दूसरा है आकांक्षा और पदार्थ। यदि हमारी इस दुनिया में आवश्यकता और पदार्थ के साध सम्बन्ध होता तो न इतनी गरीबी होती न इतनी अधिक समस्याएँ होतीं, न क्रान्तियाँ होती और न जटिलताएँ होतीं। आवश्यकता पूरी होती और आदमी सन्तोष की साँस ले लेता। पर ऐसा नहीं है। पदार्थ का सम्बन्ध आवश्यकता से जुड़ा हुआ नहीं है। उसका सम्बन्ध आकांक्षा से जुड़ा हुआ है। जब पदार्थ का सम्बन्ध आकांक्षा से जुड़ गया तो गरीबी भी होगी, घोटाला और संग्रह भी होगा, भावों में तेजी भी आएगी, अपव्यय भी बढ़ेगा, धन को तानने का प्रयत्न भी होगा और व्यक्तिगत स्वामित्व भी आएगा। आकांक्षा या इच्छा मौलिक मनोवृत्ति है। लोभ केन्द्रीय मनोवृत्ति है। मनुष्य लोभ के द्वारा संचालित है। जैन दर्शन में इस विषय में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित हुआ है। कपाय चार हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ । इनमें सबसे अधिक टिकता है लोभ। यह मूलभूत कपाय है। लोभ होता है तभी आदमी क्रोध करता है। लोभ होता है तभी आदमी अहंकार करता है और लोभ होता है तभी आदमी माया करता है। क्रोध, मान और माया समाप्त हो जाते हैं। फिर भी लोभ बचा रह जाता है। यह बीमारी की जड़ है। इसी के आसपास अन्यान्य बीमारियाँ पलती हैं। . इच्छा एक मानसिक बीमारी है, मनोवृत्ति है। इसी के कारण व्यक्ति पदार्थ का आकांक्षी बन जाता है। उत्तराध्ययन सूत्र का एक प्रसंग है। राजा ने यह घोषणा करवाई कि प्रातःकाल मेरे सामने जो पहले आएगा, उसे सवा मासा सोना दूँगा। एक दिन कपिल नामक ब्राह्मण सोने के लोभ से वहाँ आ पहुँचा। वह अत्यन्त गरीब था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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