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दर्शन" आदि प्रकरणों में उनका गणधर गौतमस्वामीवत् इस काल में आत्मलब्धि से अष्टापद यात्रा करना आदि प्रकरणों को प्रथम प्रस्तुत करना उचित समझा है और बाद में, हमारे भी दक्षिणापथ साधनायात्रा दर्शन के बाद में उनके स्थूल बाह्यांतर जीवन को ।
एकाधिक खंडों में चल रही महाप्रभावक गुरुदेव की यह महाजीवन गाथा विद्वत्जन एवं सामान्यजन दोनों को उपयोगी हो और विशेषकर साधना क्षेत्र के तृषातुर संशोधक युवाजन को प्रेरणारूप हो ऐसी हमारी मनीषा है। सफलता कितनी मिलती है यह पाठकजन जानें। परंतु गुरुकृपा एवं अदृश्य प्रेरणाएँ हमें साथ देती रही हैं और "स्वान्तः सुखाय यह गुरुगाथा" लिखने का हम अंतरानंद उठा रहे हैं । हमारा यह "स्वान्तः सुखाय” पुरुषार्थ सद्गुरु अनुग्रह से "सर्वजन हिताय" भी बनो । हम तो अंत में सब कुछ "सद्गुरु चरणार्पण" कर मुक्त हो जाते हैं ।
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इस आलेखन-संशोधन- प्रकाशन में सद्गुरुकृपा के अदृश्य परोक्ष योगबल के उपरान्त प्रत्यक्ष सहाय सहयोग मार्गदर्शनादि हमें कई गुरुबंधुओं से प्राप्त हुआ है। इस श्रृंखला में थोड़े ही नामोल्लेखो में हम गुरुदेव - माँ के प्रायोगिक ध्यानमार्ग के कृपापात्र प्रस्तोता आदरणीय श्री नरेन्द्रभाई शाह, “अद्भुत योगी" चरित्रलेखक श्री पेराजमल जैन, सद्गुरुसमर्पित गुरुपूजाकथा लेखिका एवं पत्रसंग्राहिका बहनश्री पुष्पाबाई 'स्वयंशक्ति', गुप्त नम्र अर्थसहायक श्री राहुल अनिल चोरड़िया और सर्वाधिक तो परिश्रमपूर्ण मुद्रणकार्य संपन्नकर्ता स्वनामधन्य सद्गुरुभक्त श्री लालभाई सोमचंद के पौत्र रत्न श्री नौतम रतिलाल शाह के हम विशेष आभारी हैं, वैसे ही सभी नाम अनाम सहायकों एवं अर्थदाता मित्रों के भी, "सत्पुरुषों का योगबल विश्व का कल्याण करो ।" ॐ शान्तिः
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प्र.
बेंगलोर ( श्रा. शु.पू : 1-8-2014 )