Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 80
________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • यहाँ व्यक्तिगत या सामुदायिक रूप से साधना करने का स्वातंत्र्य है। इसमें स्वाध्याय, सामायिकप्रतिक्रमण इत्यादि धर्मानुष्ठान, ध्यान, भक्ति, मंत्रधून, प्रार्थना, भजन इत्यादि का समावेश होता है । साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक कार्यक्रमों के अलावा प्रतिदिन सत्संग स्वाध्याय, प्रवचन एवं सुबह शाम का भक्तिक्रम इतना सामुदायिक रूप से चलता है; यह भी अनिवार्य नहीं है, परंतु कोई भी इसका आनन्द, इसका लाभ छोड़ना नहीं चाहता । ऐसी समन्वयात्मक दृष्टि को लेकर आश्रम में स्वातंत्र्यपूर्वक स्वाध्याय, सत्संग, भक्ति-ध्यान की आत्मलक्षी साधना चल रही है । यह साधना जब हरेक के श्रेय के लिये सामुदायिक रूप से चलती है तब समाजलक्षी हो जाती है एवं सत्, शुद्ध परमाणु समाज के दूषित वायुमण्डल में बहने लगते हैं । इस साधनाभूमि एवं यहाँ की साधना की यह एक छोटी-सी झलक है । छिपा हुआ इतिहास : प्राचीन "किष्किंधा " नगरी एवं "विजय नगर" के प्रासादों के भव्य इतिहास की तरह साधकों सुरम्य एवं भीरुओं को भयावह प्रतीत होती इन गिरि-कंदराओं एवं गुफाओं का भी अद्भुत इतिहास है, जो कि काल के गर्भ में छिपा हुआ हैं । कई निर्ग्रन्थों ने यहाँ ध्यानस्थ होकर ग्रंथिभेद किया है, कई जोगियों ने जोग साधा है, अनेक ज्ञानियों ने यहाँ विश्व चिंतन एवं आत्म-चिंतन द्वारा स्व-पर के भेदों को सुलझाया है, अनेक भक्तों ने यहाँ पराभक्ति के अभेद का अनुभव किया है एवं विविध भूमिकाओं के साधकों ने यहाँ स्वरूप - संधान किया है। इनका इतिहास किताबों के पन्नों पर नहीं, अपितु यहाँ के वातावरण में छिपा हुआ है एवं गुफाओं-गिरि-कंदराओं में से उठते आंदोलनों सूक्ष्म घोष-प्रतिघोषों में सुनाई दे रहा है। किसी नीरव गुफा में प्रवेश करते ही इसकी ध्वनि सुनाई देती है.... जो स्थूल में से सूक्ष्म एवं शून्य निर्विकल्पता की ओर ले जाती है..... । अनेक महापुरुषों की पूर्व-साधनाभूमि का यह इतिहास प्रेरणा एवं शांति - समाधि प्रदायक है । 6 यहाँ आकर बसनेवाले इस अवधूत संशोधक को पूर्वकालीन साधकों की ध्वनि - प्रतिध्वनि एवं आंदोलनों को पाने से पूर्व कई तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा । इन गिरिकन्दराओं में उस समय हिंसक पशु, भटकती अशांत प्रेतात्माएँ, शराबी एवं चोर डाकू, मैली विद्या के उपासक एवं हिंसक तांत्रिकों का वास था । इस भूमि के शुद्धीकरण के क्रम के अन्तर्गत घटी कुछ घटनाओं का उल्लेख अप्रासंगिक नहीं होगा । जब हिंसा ने हार मानी.... ! आश्रम की स्थापना के पूर्व जब भद्रमुनि इन गुफाओं में आये तब उन्हें पता चला कि यहाँ कई तांत्रिक अत्यंत क्रूरता से पशु बलि दे रहे हैं। दूसरी ओर इन हिंसक लोगों के मन में इस अनजान अहिंसक अवधूत के प्रति भय उत्पन्न हुआ । (उनके) अपने कार्य में इनसे विक्षेप होगा, ऐसा मान उनको खत्म कर देने का ( उन्होंने ) निश्चय किया । (60)

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