Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ (5) • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • ट्रीची ( यात्रा में ) दिनांक 24-2-1970 सद्गुणानुरागी सेवाभावी मुमुक्षु श्री चन्दुभाई टोलिया सपरिवार तथा श्री छोटुभाई सपरिवार हम मद्रास का कार्यक्रम सम्पन्न कर के गत शनिवार की सुबह वहाँ से प्रयाण कर के शाम के बाद यहाँ सकुशल पहुँच गये हैं। रास्ते में पुनुर पहाड़ी पर कुन्दकुन्दाचार्य के चरणों के दर्शन किये । तींडीवनम् से बारह मील की दूरी पर एक गाँव में जैन मंदिर तथा जैन मठ के दर्शन भी हुए । तींडीवनम् में आहार पानी लिए । मद्रास में छोटुभाई के साले तथा यहाँ उनके सुपुत्र आये थे । उन्होंने उनका सन्देश हमें दिया था । रविवार को लिंगीपट्टी का मकान देखा । आसपास में रहनेवाले लोग उस मकान के आसपास की तीनों दिशाओं में मलत्याग करने जाते हैं, जिस कारण से हवा दूषित प्रतीत हुई । मकान भी अत्यन्त जीर्ण दशा में था । आधे रास्ते में अकस्मात् के कारण मृत दो मनुष्यों के शव पर दृष्टि पड़ी । इसे देखकर माताजी तो घबरा गई । इन सब कारणों से वह स्थान कैन्सल कर दिया है । अब श्रीरंगम् की श्रेणी में यहाँ से तेरह मील की दूरी पर कावेरी तथा एक अन्य नदी के संगम पर स्थित एक टापू पर एक डाक बंगला है उसका एक खण्ड तथा बाथरूम मिल सकते हैं । वहाँ गुरुवार को जायेंगे । मैं एक छोटे-से तंबु में अथवा कुटिर में वृक्षों की घटा के नीचे रहूँगा । माताजी अपनी मातृमंडली के साथ कमरे में रहेंगी । अधिक लोग वहाँ रह सकें ऐसी सुविधा नहीं है । अतः वहाँ आने की इच्छा रखने वाले लोगों को सन्तुष्ट करने की गुंजाईश नहीं है । अगर वहाँ का पानी अनुकूल आ गया तो पूरा महीना वहाँ रहेंगें । व्याख्यान बंद रखने का तय किया गया है। केवल स्वास्थ्य सुधार तथा साहित्य संशोधन का लक्ष मुख्य रूप से रखना है । रविवार को खोड़ीदासभाई तथा उनके भतीजे कुम्भकोणम् से आमन्त्रण देने आये थे । अन्य स्थानों से भी आमन्त्रण आते हैं । स्वास्थ्य कुछ ठीक होने के बाद ही उस विषय में उचित विचार करेंगें । वहाँ भी डेढ़ मील की दूरी पर नदी के तट पर हरि ॐ आश्रम है । लेकिन वहाँ के मच्छर खोड़ीदासभाई के लिए उपसर्गकर्ता सिद्ध हुए हैं, जिस कारण से माताजी ने उसे नापसंद किया है । कल प्रतापभाई का पत्र हम्पी जा कर यहाँ आया है। श्री चन्दुभाई के मंगवाये हुए जिनालय के नशे का काम भी व्यस्ततावश वे कर सके नहीं हैं, ऐसा लिखा है । विद्यापीठ छोड़कर बेंगलोर में स्थिर होने के विषय में भी उन्होंने लिखा है । श्री चन्दुभाई की बेंगलोर में उपस्थिति निश्चित नहीं होती जिस कारण से यह पत्र दोनों मित्रों के नाम संयुक्त रूप से लिखा है और लिखता रहूंगा । ॐ शांतिः । सहजानन्दघन के अगणित आशीर्वाद (91)

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168