________________
(6)
• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा •
श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम fanich 06-06-1970
सद्गुणानुरागी भव्यात्मा श्री चन्दुभाई एवं श्री प्रतापभाई,
आपका भेजा हुआ सुपरवाईजर यहाँ आ गया है और उसके साथे भेजे हुए पत्र प्राप्त हुए । उसके पहलेवाले पत्र भी प्राप्त हुए थे ।
आपकी सूचनानुसार श्री गिरि की बनाई हुई बील की सभी फाइलें सुपरवाईज़र को सुखलाल ने सौंप दी हैं । श्री घेवरचन्दजी शायद कल यहाँ आयेंगे तो उनका पत्र उनके हाथों में दे दिया जायेगा ।
आप सकारण यहाँ आ नहीं सके हैं वह क्षम्य है । अवकाश मिलने पर आयें । इस विषय में आपसे कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है ।
इस देह में एक सप्ताह पूर्व शनि और रविवार को पाँच-सात बार वमन हुआ था । उसके पहले पाँच दिन एक बार भी वमन नहीं हुआ था और इसके पश्चात् आज रात्रि तक शांति है तथा अब शांति ही रहेगी ऐसा विश्वास है ।
नित्य सुबह-शाम आधा-आधा घण्टा टब - बाथ लेता हूँ । पेट पर एक बार बर्फ़ रखता हूँ । इसके अतिरिक्त कोई औषध लेना नहीं है । केवल मोरपींछ की भस्म लेता हूँ । भोजन में बिना घी की सूखी चपाती तथा उबले हुए करेले की सब्ज़ी लेता हूँ । स्वल्प में दूध लेता हूँ । यह खुराक अनुकूल आ गया है । आज बिना लकड़ी के सहारे दो फलाँग घूम सका हूँ । प्रवचन आदि बन्द हैं । सब के आग्रह के कारण विश्राम कर रहा हूँ । शक्ति मन्द गति से वर्धमान हो रही है । दो सप्ताह में अच्छी स्फूर्ति आ जायेगी ऐसा लगता है, इसलिए चिन्ता न करें ।
1
माताजी का स्वास्थ्य नरमगरम रहता है फिर भी इस देह की सेवा में वे तत्पर रहतीं हैं । इसके अतिरिक्त दो सप्ताह से आये हुए इस देह के निकट के संबंधी भाई सात व्यक्ति यहाँ ठहरे हैं । उनमें से कुछ लोग अगले सोमवार के दिन जायेंगें और कुछ यहाँ रूकेंगे । यहाँ के शेष समाचार श्री हीरजीभाई से जान लें । श्री छोटुभाई सपरिवार आदि सत्संगी जनों को मेरे तथा माताजी के हार्दिक आशीर्वाद ज्ञापित करें तथा आप सर्व भी स्वीकार करें । ॐ शांतिः ।
श्री प्रतापभाई,
(92)
आप की पराभक्ति की भूमिका दिन प्रतिदिन वृद्धिंगत हो और वह आत्मसाक्षात्कार के रूप में परिणत हो यही अंतर के आशीर्वाद । धर्मस्नेह में अभिवृद्धि हो । ॐ शान्तिः । सहजानन्दघन के हार्दिक आशीर्वाद पुनश्च :- आज कई दिनों के बाद पत्रलेखन का प्रथम प्रयास है, अतः व्यवस्थित रूप में लिखा नहीं गया है तो क्षम्य गिनें । - स.