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। श्री सहजानंदघन गुरूगाथा .
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श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम
दि. 9-12-1969 सद्गुणानुरागी भव्यात्मा श्री चन्दुभाई सपरिवार,
कृपाळु की कृपा से आत्मा में आनन्द प्रवर्तमान है । शरीर में अर्श की कृपा प्रवर्तित है । माताजी को हार्ट में तकलीफ़ शुरु हुई थी, हाई प्रेशर भी था जिस कारण से डॉ. गोपीनाथ का उपचार चल रहा है।
आप सपरिवार तथा श्री छोटुभाई सपरिवार स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे । कल श्री प्रतापभाई का यहाँ से जो लेख भेजा था वह उन्हें मिल गया है उसके विषय में उनका पत्र है । व्यस्तता के कारण न तो वे ववाणिया जा सके, न समय पर पत्र लिख सके उसके विषय में क्षमायाचना की है।
वे पी.एच.डी. करना चाहते हैं उसके सम्बन्ध में सलाह माँग रहे हैं । इस विषय में अब लिखूगा । आप तथा छोटुभाई उन्हें यहाँ खींच लेना चाहते हैं वह यद्यपि हितकर है, फिर भी उचित समय आने पर देख लेंगे । अभी तो उन्हें उस क्षेत्र में (विद्याभ्यास के क्षेत्र में) प्रगति करने दें । अन्तराय न करें । धर्म स्नेह में वृद्धि करें । ॐ शान्ति ।
सहजानन्दघन के अगणित आशिष
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बेंगलोर,
दि. 21-1-1970 पूज्य गुरुदेव,
प्रणाम स्वीकार करें । संयोगवशात् इस पूर्णिमा के दिन वहाँ नहीं आ सकूँगा, जिससे हर बार आपकी वाणी के श्रवण का जो महान लाभ मुझे प्राप्त होता था, वह इस बार नहीं होगा अतः दुःख होता है, क्योंकि जब जब आपके पास आता हूँ तब तब यहाँ उद्भव होनेवाले अनेक प्रश्नों का समाधान सहज ही प्राप्त हो जाता है । भविष्य में नियमित रूप से अवश्य आऊँगा। . दुसरी चिन्ता काम की रहती है। जो जिम्मेदारी मेरी शक्ति की सीमा से बाहर होते हुए भी मैंने ली है उसका स्वीकार मैनें केवल इस विचार से किया है कि मैं तो केवल 'निमित्त' हूँ । काम तो परम कृपाळुदेव की कृपा से उत्तम होगा ही और इसके साथ साथ उस बहाने मुझे आपकी वाणी का अमूल्य लाभ भी प्राप्त होगा ।
वहाँ सब को जय जिनेन्द्र । पू. माताजी को मेरे दण्डवत् प्रणाम । अन्य आश्रमवासियों __ को यथायोग्य ।
चन्दुभाई टोलिया के जयजिनेन्द्र सह दण्डवत् प्रणाम
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