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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा .
इतना सब कुछ होने पर भी यदि उस दिशा में हिम्मत की कमी महसूस हो रही हो तो लग जाईये उर्वरा भूमि पर खेती करने..... ॐ
सन्त कबीर तथा सन्त श्रीमद् राजचन्द्रजी के साहित्य के अध्ययन-अनुशीलन से स्व-पर उपकार तो अवश्यंभावी है ही । इसके अतिरिक्त सन्त कबीर की भाँति श्रीमद् का साहित्य गुर्जरसीमा को पार कर हिन्दी भाषा-भाषी प्रदेशों में प्रवरित-प्रसारित हो महक उठे, यह इच्छनीय है। वैसे हिन्दी भाषा में उनका जितना होना चाहिए उतना प्रचार हुआ नहीं है। महात्मा गाँधीजी के उन अहिंसक गुरु को गाँधीजी की ही भाँति जगत के समक्ष प्रकाश में लाना चाहिए, जिससे शान्ति की खोज में जगत सच्चा मार्गदर्शन प्राप्त कर सके । लेकिन हम लोगों ने उनको भारत के एक कोने में ही छुपाकर रख दिया है यह हम लोगों की सामान्य करामात नहीं है क्योंकि मतपंथियों ने उस सूर्य को बादलों की घटा में इस प्रकार से छुपा के रख दिया है कि शायद ही कोई उसके दर्शन कर सके । ॐ
इस विषय में लिखना तो बहुत चाहता हूँ (और भी अनेक बातें मन में आती हैं) परन्तु यह शरीर अधिक बैठने नहीं देता है। करीब बीस दिन से अर्श के रूप में व्याधिदेव ने इस शरीर में आसन जमाया है । जलन तथा शूल के द्वारा उसने अग्नि परीक्षा आरम्भ की है, फिर भी परम कृपाळु की कृपा से उस व्याधि का समाधिमय दशा में वेदन हो जाता है। इसी कारण से समय से पत्र का उत्तर न दे सका जिसके लिए क्षन्तव्य हूँ । सुज्ञेषु किं बहुना ? महामना पण्डितजी को धर्मस्नेह ज्ञात करायें और आप भी स्वीकार करें । ॐ शान्ति.... ।
सहजानन्द के हार्दिक आशीर्वाद
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द्वारा - डो.पं. सुखलालजी सरित् कुंज, आश्रम मार्ग
अहमदाबाद-9
16-02-1970 (प्रातः साड़े पाँच) परम पूज्य गुरुदेव,
सविनय वन्दना स्वीकार करें। आप सुखशान्ति में विराजमान होंगे और अब आपकी शारीरिक व्याधि की प्रतिकूलताएँ कम हुई होंगी । __परम कृपाळु देव की कृपा से मेरी और परिवार की आधि-व्याधि उपाधियों के बीच भी अल्प अंशों में समाधि की अवस्था प्रवर्तित रही और स्मरण, सजगता और साधना दृष्टि विशेष तीव्र रहे । अब समय की भी थोड़ी बाह्य अनुकूलता मिलने से कई दिनों के बाद आपको कछ विस्तार से लिख रहा हूँ।
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