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. श्री सहजानंदघन गुरूगाथा .
प्रकरण-१० Chapter-10/ ( देह-रथी की बाल्यावस्था : विद्यार्जन शिक्षा
जीभाई, मूल नामधारक, मूळ नक्षत्र में जन्मे इस महामुनि का देह-रथ कच्छ डुमरा गाँव का । उनका जन्म और बाल्यकाल 'होनहार बिरवान के होत चिकने पात' (पत्रना लक्षण पारणामांथी) उक्ति सिद्ध करता है, जैसा कि उनके स्वयं के 'आत्मकथा' - शब्द घटित घटनाएँ और उनके चरित्र लेखकों के स्थल कथन हैं: ___ "बीसा ओसवाल वंश के, परमारगोत्रीय सुश्रावक श्री नागजीभाई कच्छ देश में निवास करते थे, जिनकी धर्मपत्नी सुश्राविका नयनादेवी की कोख रुपी सीप से उत्तम मौक्तिक की भाँति विक्रम संवत १९७० मिति भाद्रपद शुक्ल १० के दिन मूला नक्षत्र में पुत्ररत्न का जन्म हुआ ।"०००
जन्मकुंडली का संकेत मानें तो "सब ग्रह उत्तम स्थान में थे, मूला नक्षत्र और राजयोग
था।"१
उनका यह जन्मदिन रविवार था, सूर्योदय का समय था और अंग्रेजी तारीख ३०-८-१९१४ थी ।
उनके दादाजी का नाम सामतभाई काराणी, छोटे भाई का नाम मोरारजी, दो बहनों के नाम मेघबाई-भाणबाई और चचेरे भाईयों के नाम हैं (१) श्री विसनजी भाणजीभाई (२) श्री जेठालाल भाणजीभाई और (३) श्री प्रेमजीभाई ।
नवकार महामंत्र, जिन चोवीसी नाम आदि प्राथमिक जैन धर्म संस्कार उन्हें छोटी आयु से ही माँ की मीठी गोद में मिले थे । फिर विशेष धार्मिक ज्ञान उन्हें प्राप्त हुआ यतिश्री रविसागरजी के पास से ।
उनकी देह-गाड़ी, देह-रथ का इस प्रकार प्रथम प्रस्थान होता है । कई जन्मों के पूर्वसंचित पुण्यों एवं पूर्वानुभवों से लेकर इस योगीश्वर देहधारी का बाल्यकाल रोमांचक बना रहता है। उनकी संक्षिप्त 'आत्मकथा' ही इसका स्पष्ट संकेत करती है । उन ज्ञानावतार-अनुग्रह से पूर्वज्ञान-प्राप्ति ___ "उस ज्ञानावतार (प.कृ.दे. श्रीमद् राजचंद्रजी) की असीम कृपा से यह देहधारी निश्चयात्मक रूप से ऐसा जान सका है कि पूर्व के कुछ जन्मों में केवल पुरुषवेद से इस आत्मा का उस महान पवित्र आत्मा के साथ व्यवहार से निकट का सगाई सम्बन्ध ओर परमार्थ से धर्म सम्बन्ध घटित हुआ है । उनकी असीम कृपा से यह आत्मा पूर्व में अनेकबार व्यवहार से राजऋद्धियाँ और परमार्थ से महान तप-त्याग के फलस्वरूप लब्धिसिद्धियाँ अनुभव कर चुकी है। ___ "राजऋद्धियों से उद्भव होनेवाले अनर्थों से बचने हेतु पूर्वजन्म में आयुबंध काल में किये हुए संकल्प बल से यह देहधारी इस देह में एक खानदान किन्तु उपजीवन में साधारण स्थितिवाले १. भक्ति झरणां : जगत्माता श्री धनदेवीजी : पृ. १, २ २. श्री सहजानंदघन चरित्र : श्री भंवरलाल नाहटा : पृ. ३, ५
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