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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा •
परिशिष्ट- १ कर्नाटक का गौरव : भगवान बाहुबली
कु. पारुल टोलिया
पहाड़ियों और हरियाली की प्राकृतिक सुन्दरता से घिरा कर्नाटक का एक छोटा सा जैन तीर्थ श्रवणबेलगोल और इसमें स्थित ५७ फुट ऊँची विशालकाय भगवान बाहुबली की दिव्य प्रतिमा जिसकी आभा प्राकृतिक संपत्ति को और रमणीय बना देती है, किसी मूर्तिकार द्वारा एक ही चट्टान में से बड़ी लगन एवं श्रद्धा से बनायी गयी इस मूर्ति ने यहाँ हज़ार वर्ष बीता दिए हैं। प्रतिदिन हज़ारो की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं और भगवान बाहुबली के जीवन को याद करते हुए उनकी त्याग और तपस्या के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं ।
प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली ने अपने पिताश्री के पथ पर चलकर मायावी दुनिया से संन्यास ले लिया था । उन्हें इसके लिए प्रेरित करनेवाला प्रसंग भी बड़ा रोचक है । बाहुबली के अग्रज राजर्षि भरत बड़े ही महत्वाकांक्षी एवं साहसी राजा थे । पृथ्वी के छह खंडों पर विजय पताका लहराने के बाद वे अनुज बाहुबली के राज्य पोदनपुर पर अधिकार जमाने की दृष्टि से बाहुबली को अपने अधीन करना चाहते थे । पोदनपुर के स्वाभिमानी नरेश बाहुबली इसके लिए तैयार न थे । राजा भरत के अहम् को ठेस लगी और उन्होंने बाहुबली को युद्ध के लिए ललकारा । आपसी मतभेद को सुलझाने के लिए निर्दोष सैनिकों की हत्या अनुचित समझकर उन्होंने द्वन्द्वयुद्ध का निश्चय किया। जीत बाहुबली की ही हुई । पर युद्ध के बाद उनका मन इस माया प्रपंच से उचट गया और उन्होंने उसी समय दीक्षा ग्रहण की । लम्बी तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान की
प्राप्ति हुई । मूर्ति के शिल्पकार ने भगवान बाहुबली की इसी ध्यानमग्न, शांतचित्त मुद्रा को कुशलता
प्रस्तुत किया है ।
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एक हज़ार वर्षों से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हुई इस मूर्ति का प्रत्येक १२ वर्ष के बाद तथा प्रत्येक शताब्दी के अवसर पर महामस्तकाभिषेक किया जाता है । मूर्ति की स्थापना के सहस्त्र वर्षों की पूर्ति पर २२ फरवरी १९८१* को गोमटेश्वर सहस्त्राब्दी समारोह धूमधाम से मनाया गया था जिसमें देश की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी सहित कई विशिष्ट व्यक्ति उपस्थित थे । जनसामान्य वर्षो से इस मूर्ति को श्रद्धासुमन अर्पण करता आया है, पर प्रेम और त्याग की यह दिव्य प्रतिमा हज़ार वर्ष पहले की उसी एकचित्त मुद्रा में खड़ी है- अचल, ध्यानमग्न, अलिप्त, सामान्य जन को प्रेम और अहिंसा के पथ पर चलने का आह्वान देती हुई ।
" कारण " बेंगलोर (कर्नाटक) Dec. 1985 Ref : “बाहुबली दर्शन" (Documentary, VCD-DVD & T.V. Telecast : 10.2.2006) इसी पावन अवसर पर हंपी रत्नकूट के श्री चन्द्रप्रभु गुफामंदिर में स्थित बाहुबली चित्रपट पर भी अपने आप मस्तकाभिषेक करती हुई दूध की धारा बही थी- आत्मज्ञा पूज्या माताजी की निश्रा में ! ज्ञानियों की अकललीला का एक और प्रमाण !! - प्र. )
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